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सींघजी मेघजीए उद्धार कराव्यो' निम्नोक्त लेख आज भी देखने को मिलता है। वहाँ से थोडी सीढियाँ चढकर आगे बढते हुए लगभग 2820 सीढियों के पास दायीं ओर लोहे की जालीवाली एक देवकुलिका में जिनेश्वर परमात्मा की मूर्तियाँ खोदी हुई आज भी देखने को मिलती हैं। वहाँ से आगे 2900 सीढियों के पास सफेद कुंड आता है। आगे 3100 सीढियों के पास बायीं ओर की दीवार के एक झरोखे में खोडीयार माँ का स्थान आता है और 3200 सीढियों के पास 'खबूतरी' अथवा 'कबूतरी खाण' नामक स्थान में काले पत्थर में अनेक कोटर दिखायी देते है। लगभग 3550 सीढियों पर पंचेश्वरी का स्थान आता है। अभी वर्तमान में 'जय संतोषीमां', 'भारत माता का मंदिर', 'खोडियार माँ का मंदिर', 'वरुडी माँ का मंदिर', 'महाकाली का मंदिर', तथा 'कालिका माँ का मंदिर' के नाम से देवकुलिका आती हैं। वहाँ से आगे 3800 सीढियों के बाद उपरकोट के किल्ले का दरवाजा आता है जिसे देवकोट भी कहा जाता है। उस दरवाजे पर नरशी केशवजी ने मंजिल बंधवायी थी। जहाँ अभी वनसंरक्षण विभाग का कार्यालय देखने में आता है। इस द्वार से अंदर प्रवेश होते ही
अनेक जिनालयों की हारमाला का प्रारंभ होता है। (1) श्री नेमिनाथजी की ढूंकः
इस किल्ले के मुख्य द्वार से प्रवेश करते हुए बायीं ओर श्री हनुमान जी की तथा दायीं ओर कालभैरव जी की देवकुलिका आती है। वहाँ से 15-20 कदम आगे बायीं ओर श्री नेमिनाथजी की ढूंक में जाने का मुख्य द्वार आता है, जहाँ 'शेठ श्री देवचंद लक्ष्मीचंदनी पेढी गिरनार तीर्थ' ऐसा लिखित बोर्ड लगाया गया है। इस मुख्य द्वार से अदंर प्रवेश करते हुए बायीं
और दायीं ओर पुजारी-चौकीदार-मेनेजर आदि कर्मचारियों के कमरे हैं। वहाँ से आगे जाने पर बायीं ओर पानी की प्याऊ और ऊपर नीचे यात्रियों के विश्राम के लिए धर्मशाला के कमरे बने हुए हैं। सामने की तरफ
गिरनार तीर्थ