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सीढियों पर खोडियार माँ का स्थान आता है। आगे लगभग 1150 सीढियों के पास बायीं ओर जटाशंकर महादेव की देवकुलिका आती है। 1200 सीढियों पर एक नया विश्रामस्थान है । आगे 1500 सीढियों का स्थान धोलीदेरी के नाम से पहचाना जाता है वहाँ पर भी विश्राम के लिए नया स्थान बनवाया गया है। आगे लगभग 1950 सीढियों का स्थान कालीदेरी के नाम से पहचाना जाता है। यहाँ जो पुराना मकान है, उस पर आज भी ' धनीपरब' की तख्ती देखने को मिलती है। आगे 2000 सीढियों के पास बायीं ओर कच्चे रास्ते पर आगे बढते हुए 'वेलनाथ बापु की समाधि' का स्थान आता है। कोई साहसी हो तो उसे उस स्थान से पहाड़ के मार्ग से सहसावन की तरफ जाने का छोटा रास्ता मिल सकता है। 2000 सीढियों से आगे जाते हुए लगभग 2200 सीढियों के पास 'भरथरी की गुफा' का स्थान आता है। 2300 सीढियों के पास माली प्याऊ आती है जहाँ राममंदिर है और प्याऊ के पास बायें हाथ की तरफ एक पत्थर में 'वि.सं. 1222 श्री श्रीमालज्ञातीय महं श्री राणिना सुत महं श्री अंबाकेन पट्टा कारिता । ' ऐसा लेख देखने को मिलता है। यहाँ नजदीक में मीठे और शीतल जल का एक कुंड भी है जो वि.सं. 1244 में श्री प्रभानंदसूरी महाराज साहेब के उपदेश से का कार्यालय बंधवाया गया था ।
इस मंदिर से आगे थोडे कठिन चढान के बाद लगभग 2450 सीढियों के पास 'काउस्सग्गीया का पत्थर' तथा प्राचीन 'हाथी पहाण' आता है। वैसे तो उस पहाड पर फिसलने का भय होने से अधिकृत व्यक्तियों के द्वारा अभी वहाँ पर सीमेन्ट कोंक्रीट का माल डालने के कारण वे पत्थर संपूर्णतया ढक गये है । वहाँ से आगे 2600 सीढियों के पास 'सती रणकदेवी का पत्थर' आता है और 2650 सीढियों के पास पहाड की एक दीवार पर 'स्ववास्ति श्री सं. 1683 वर्षे कार्तिक वदी 6 सोमे श्री गिरनारनी पूर्वनी पाजनो उद्धार श्री दीवाना संघे पुरुषा निमित्त श्रीमाल ज्ञातीय मां
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त्रितीर्थी
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