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मुनि जीवन में आपने संस्कृत, प्राकृत, न्यायशास्त्र, काव्यशास्त्र, व्याकरण, साहित्य, दर्शन और आगम विषयो के अनेक ग्रंथ कण्ठस्थ कर लिए। कण्ठस्थ श्लोकों की संख्या लगभग २० हजार थीं। लगभग १३-१४ वर्ष की उम्र में आपने छोटे साधु-साध्वियों को पढाना शुरू कर दिया। १६ वर्ष की उम्र में आते-आते आप कविता करने लगे। १८ वर्ष की उम्र में 'कल्याण मंदिर स्त्रोत' की समस्या पूर्ति के रूप में 'गलू कल्याण मंदिर' नामक स्तोत्र रच डाला। अध्ययन, गुरु-उपासना, स्मरण व चिंतन करना तथा अल्पभाषी व अनुशासित होना आपकी प्रकृतिगत प्रवृत्तियां थीं। हर अनुकूल एवं प्रतिकूल परिस्थिति में सहजता एवं समभाव से रहना आपके कालजयी व्यक्तित्व की विशेषता है। ___ अनुशासन एवं वात्सल्य आदि गुणों के कारण मात्र २२ वर्ष की अवस्था में इतने बड़े धर्मसंघ के आचार्य बन गए। आचार्य बनते ही आपको अनेक आंतरिक एवं बाह्य संघर्षों का सामना करना पडा। मगर आप जरा भी विचलित नहीं हुए और पुरुषार्थ, आत्मबल, आकिन्चन्य एवं सिंह वृत्ति से सबका मुकाबला कर सत्य और अहिंसा के बल पर विजयपताका हांसिल करते रहे।
आप एक मूर्धन्य साहित्यकार थे। आपने साहित्य को गगनचुम्बी ऊंचाईयां प्रदान की। आपका साहित्य, आपकी अन्तदृष्टि, विशाल चिंतन, गहरी सोच, ग्रहणशीलता एवं विकास की उत्कंठा को परिलक्षित करता है। एक साहित्यकार की भूमिका निभाते हुए अपने प्रेरणा पाथेय से आशा निराशा के बीच झूलती हुई भ्रांत मानवता को आध्यात्मिक, व्यवहारिक एवं वैज्ञानिक मार्गदर्शन दिया। आपके साहित्य की परिधि बहुत व्यापक थी।
विषय की दृष्टि से आपके साहित्य को तीन भागों में बांटा जा सकता है। १. मानवतावादी दृष्टिकोण २. भावात्मक एकता ३. सम्प्रदायातीत वैज्ञानिक धर्म की अवधारणा।
आपका लक्ष्य था मानव में मानव का दर्शन कराकर करुणा, मानवीय एकता तथा समाज में व्याप्त विघटनकारी मानसिक हिंसा फैलाने वाली धारणाओं, विचारणाओं एवं प्रवृत्तियों को समाप्त करना। इस दिशा में चिंतन कर ‘नया मोड' कार्यक्रम प्रारम्भ किया। नशामुक्ति, व्यसन मुक्ति, आहार शुद्धि, मानवीय एकता व नैतिकता के अभियान चलाये गए। 'प्रचुर मात्रा में साहित्य निर्माण कर प्रवचन, विचार गोष्ठियों एवं शिविरों द्वारा मानस परिवर्तन के प्रयास किये गए। धार्मिक सहिष्णुता, सौहार्द और समन्वय की बात होने लगी।
इसी भावना से प्रेरित होकर अणुव्रत जैसे आध्यात्ममूलक आंदोलन के प्रवर्तक बने। इस धर्मक्रांति का उद्देश्य था चरित्र विकास, आत्मोदय, नैतिकता, जनकल्याण, अनाक्रमण, अहिंसा, अपरिग्रह एवं विश्वशांति की भावना, सर्वजन हिताय एवं आसाम्प्रदायिक धर्म का उदय, धर्म को जातिवाद व वर्णवाद तथा धर्मग्रंथों व ૧૯૪ + ૧લ્મી અને ૨૦મી સદીના જૈન સાહિત્યનાં અક્ષર-આરાધકો