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आचार्य श्री तुलसी के साहित्यिक अवदान
- . विजयालक्ष्मी मुंशी
શ્રીમતી વિજયાલક્ષ્મી મુંશી સેવાનિવૃત્ત પ્રધાનાચાર્ય છે. અધ્યયનની તેમની વિશિષ્ટ દૃષ્ટિ આ લેખમાં દેખાઈ આવે છે. – સં.)
सम्राट नेपोलियन ने कहा है - विश्व में दो ही शक्तियाँ है - तलवार और कलम। तलवार की शक्ति स्पष्ट है पर अन्त में वह सदा कलम से हार खाती है। ऐसे ही बीसवीं सदी के शलाका पुरुष आचार्य तुलसी ने जब अपनी लेखनी को कागज पर उतारा तो सृजन की सारी संभावनाएं मूर्त हो गई।
आचार्य श्री तुलसी का व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व बहुआयामी था। आप एक ऐसे प्रकाशपुंज थे, जिन्होंने अपने ज्ञान और चारित्र की ज्योति से मानव मात्र के मन और हृदय को अपनी वाणी एवं कार्यों से आलोकित कर, प्रचलित भ्रमात्मक धारणाएं, रूढियों, सम्प्रदायवाद, हिंसा, अधर्म, अनैतिकता तथा परिग्रह के उत्पीडन से मुक्त कर नई दिशा, नया मार्गदर्शन एवं प्रेरणा देकर उनके ताप, संताप एवं संत्रास का हरण किया।
आपका जन्म लाडनूं जैसे छोटे से कस्वे में २० अक्टूबर १९१४ को कार्तिक शुक्ला द्वितीया को हुआ था। माता के सुसंस्कारों के कारण बाल्यकाल में ही आपमें अध्ययन, अध्यापन, अनुशासन, परोपकार, सत्य और ईमानदारी की परम्पराएं पूर्ण रूप से पुष्ट हो चुकी थी।
पारिवारिक विरोध एवं परिस्थितियों की प्रतिकूलता को भी अपने सहज व्यक्तित्व से अनुकूल बना कर ११ वर्ष की उम्र में अपने हृदय सम्राट कालूगणी के हाथों दीक्षा ग्रहण कर ली।
आपके जीवन में ग्यारह वर्ष का यह चक्र अत्यन्त महत्वपूर्ण रहा है। प्रथम ग्यारह वर्ष गृहस्थी में, दूसरे ग्यारह वर्ष मुनि जीवन में तथा तीसरे ग्यारह वर्ष में अध्ययन-अध्यापन व आचार्य पद की प्राप्ति तथा चौथे में रचनात्मक कार्य यथा अणुव्रत आन्दोलन आदि का प्रवर्तन। ___आपकी शिक्षा-दीक्षा का कार्य गंभीरचेता आचार्य कालूगणी के सान्निध्य एवं निर्देशन में सम्पन्न हुआ।
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