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________________ ८२ जैन कथा कोष चले गये हैं, तो वह चारों पैरों और गर्दन को निकालकर चला । यह देखते ही दोनों श्रृंगाल दौड़कर आये और उस पर टूट पड़े, उसका प्राणान्त कर दिया । लेकिन गुप्तेन्द्रिय नाम का कछुआ दीर्घकाल तक उसी स्थिति में पड़ा रहा। श्रृगालों को विश्वास हो गया कि यह मरा हुआ है। वे वहां से चले गये। जब कछुए ने भली-भांति चारों ओर सावधानी से देख लिया कि श्रृंगाल चले गये हैं तो वह पानी में कूद गया और वहां सुख से रहने लगा । उसकी प्राण रक्षा गई। 1 इसी तरह पांचों इन्द्रियों को वश में रखने वाला प्राणी सुखी होता है। — ज्ञाताधर्मकथा, अ. ४ – उपदेश प्रासाद, भाग ५ ४८. कामदेव ( श्रमणोपासक ) श्रावक 'कामदेव' चम्पानगरी का निवासी था। उसकी पत्नी का नाम 'भद्रा' था। कामदेव एक समृद्ध गृहपति था । उसके यहाँ छ: कोटि सोनैया व्यापार में, छः कोटी सोनैया गृह उपकरणों में तथा छः कोटि सोनैया सुरक्षित निधि के रूप में जमीन में थीं। वह व्यापार के साथ-साथ कृषि कर्म भी किया करता था । उसके पास गायों के छः गोकुल भी थे । प्रत्येक गोकुल में दस हजार गाएं थीं। भगवान् महावीर के पास उसने और उसकी पत्नी 'भद्रा' ने श्रावकधर्म स्वीकार किया और उसकी निरतिचार पालना करने लगा । अवस्था के परिपाक के साथ-साथ गृहस्थी का सारा भार अपने ज्येष्ठ पुत्र को सौंपकर स्वयं धर्म-क्रिया में लीन रहने लगा । 1 एक बार पौधशाला में बैठा वह पौषध में तल्लीन था, उस समय एक मिथ्यात्वी देव आया। कामदेव को धर्म से विचलित करने के लिए महाभयंकर रौद्र पिशाच का रूप बनाया और फिर उसे मरणान्तक उपसर्ग देते हुए कहा— 'हे नराधम ! तू अपने व्रतों को छोड़ । भगवान् महावीर का नाम रटना छोड़ । आँख खोलकर मेरी ओर देख, अन्यथा अभी-अभी इस तलवार से तेरे शरीर के टुकड़े-टुकड़े करता हूँ।' यों कहकर तलवार का वार किया । पर कामदेव अविचल रहा । तब क्रुद्ध होकर देव ने हाथी, सिंह, बाघ, सर्प आदि अनेक रूप बनाबनाकर भयंकर कष्ट दिये; पर 'कामदेव' अपने प्रण पर अडोल रहा । तब देव
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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