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________________ · जैन कथा कोष कि मैं चन्द्र की सारी सम्पत्ति का हरण करूंगा । इस निदान की आलोचना किये बिना ही वह मर गया । भद्र ही दूसरे जन्म में रत्ना बना और तीसरे जन्म में वेश्या देवदत्ता । उस निदान के कारण ही देवदत्ता ने कृतपुण्य का सर्वस्व हरण कर लिया । इन घटनाओं से कृतपुण्य प्रतिबोधित हो गया। उसके साथ ही उसकी सातों पत्नियों ने भी संयम ले लिया । ८१ (क) चन्द्रतिलक उपाध्याय रचित — अभयकुमार चरितं महाकाव्य, सर्ग ६ के आधार से । - (ख) कवि जायसी द्वारा रचित कयवन्ना शाह नो रास ४७. कछुआ की कथा वाराणसी नगरी में बहने वाली गंगा नदी के किनारे पर मृदंग नाम का एक ह (तालाब) था। उसमें गुप्तेन्द्रिय और अगुप्तेन्द्रिय नाम के दो कछुए रहते थे । वे दोनों कभी-कभी किनारे पर आकर तालाब की शीतल रेती में क्रीड़ा करते रहते थे। एक बार वे दोनों तालाब की रेती में आये । दूर से उन दोनों को दो श्रृगालों ने देख लिया। उन्होंने ने भी श्रृंगालों को देख लिया । श्रृगाल तो माँसभाजी होता ही है। इन्हें श्रृगाल के रूप में मृत्यु साक्षात् दिखाई देने लगी । भय के मारे इनके हृदय काँपने लगे । ये तालाब से इतनी दूर थे कि पानी में कूदकर अपने प्राण बचाना संभव न था । ये पानी तक पहुँचते तब तक श्रृगाल दौड़कर आते और इन्हें चट कर जाते। सोचते-सोचते इन्हें एक उपाय सूझ गया । इन्होंने अपने चारों पाँव और गर्दन समेटे और पीठ की ढाल के अन्दर छिपा लिये तथा मरे हुए के समान स्थिर हो गये । अपना भोज्य जानकर श्रृंगाल इनके पास आये। उन्होंने इन पर पाद- प्रहार किये, उलटा-पलटा, लेकिन ये दोनों तो शव के समान ही पड़े रहे, तनिक भी हलन-चलन न किया और न जीवित होने का कोई लक्षण ही प्रकट किया। श्रृगाल यह देखकर वहाँ से चले गये और एक झाड़ी की ओट में छिपकर बैठ गये। अगुप्तेन्द्रिय नाम का कछुआ चंचल स्वभाव वाला था । वह अधिक देर तक अपने अंगों को संकोच कर नहीं रह सकता था । उसने समझा कि श्रृगाल
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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