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________________ ८० जैन कथा कोष ___ एक बार वीर प्रभु जन-जन का उपकार करते हुए राजगृह पधारे । कृतपुण्य भी पत्नियों सहित उनके समवसरण में गया। उसने अपने वर्तमान जीवन की उलट-फेर भरी घटनाओं के बारे में जिज्ञासा प्रकट की। वीर प्रभु ने उसका पूर्वभव सुनाया श्रीपुर नगर में सुरादित्य नाम का एक सद्गृहस्थ रहता था। उसकी पत्नी का नाम रत्ना और पुत्र का नाम प्रसन्नादित्य था। कुछ दिनों बाद सुरादित्य चल बसा । प्रसन्नादित्य अनाथ हो गया। माँ-बेटे को गुजारा चलाना भी मुश्किल हो गया। वे दोनों अन्य श्रेष्ठियों के घर मजदूरी करके अपना पेट पालने लगे। माता अनाज-मसाले आदि पीस देती और पुत्र गाय-भैसें चरा लाता। ___ एक बार कोई त्यौहार आया। सभी घरों में खीर बनने लगी। प्रसन्नादित्य भी खीर खाने को मचल गया। तब पड़ोसिनों ने इसकी जिद रखने के लिए खीर बनाने की सामग्री दे दी। रत्ना ने खीर बनाई और पुत्र के लिए एक थाली में परोस दी। उसी समय मासिक व्रतधारी एक मुनि पारणा हेतु उधर आ निकले। प्रसन्नादित्य ने खीर के तीन भाग किये और उनमें से एक भाग श्रद्धाभक्तिपूर्वक मुनि को दिया, फिर दूसरा भाग भी दिया और अन्त में तीसरा भाग भी दे दिया। इस प्रकार उसने महान पुण्य का उपार्जन किया। पास ही छः स्त्रियाँ खड़ी थीं। उन्होंने दान का अनुमोदन करके पुण्य का उपार्जन किया। लेकिन प्रसन्नादित्य की माता रत्ना ने नाक-भौं सिकोड़े । उनका अपवाद किया | प्रभु ने आगे बताया-प्रसन्नादित्य ही इस जन्म में कृतपुण्य बना। जिन छः स्त्रियों ने दान की अनुमोदना की, वे उसकी छः पत्नियाँ बनीं और मुनि का अपवाद करने के कारण रत्ना देवदत्ता नाम की वेश्या बनी। __इसके बाद जब प्रभु से कृतपुण्य ने देवदत्ता द्वारा सर्वस्वहरण करने के बाद तिरस्कृत करके अपने घर से निकाल देने का कारण पूछा तो प्रभु उसे उसके तीसरे पूर्वजन्म की घटना सुनाने लगे किसी नगर में चन्द्र और भद्र नाम के दो मित्र रहते थे। चन्द्र ने एक बार अपने घर में कोई उत्सव किया। इस उत्सव में चन्द्र ने अपने मित्र भद्र को भी आमंत्रित किया और पत्नी को पहनने के लिए उसका हार माँगा। भद्र ने हार दे दिया। अब चन्द्र की नीयत उस हार पर खराब हो गई। उसने हार वापस न दिया। जब भद्र ने अपना हार वापस माँगा तो साफ इन्कार कर दिया। भद्र अपने मित्र चन्द्र की इस बेईमानी से बहुत दु:खी हुआ। उसने निदान किया
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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