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________________ ७२ जैन कथा कोष __ दूत की बात सुनकर दधिवाहन फुफकार उठा । यद्यपि करकण्डु की बात अनुचित नहीं थी, फिर भी सत्ता का गर्व अनूठा होता है। राजा ने कहा—'यह अदला-बदली का कार्य बनियों का होता है, क्षत्रियों का नहीं।' दोनों ओर बात तन गई। युद्ध की तैयारियाँ होने लगीं। दोनों ओर की विशाल सेनाएं आमने-सामने आ जमीं। समरांगण का दृश्य उपस्थित हो गया। जैसे ही साध्वी पद्मावती को यह बात ज्ञात हुई वे गुरुणीजी की आज्ञा लेकर युद्धभूमि में आयीं और सारे रहस्य का उद्घाटन स्पष्ट रूप से कर दिया कि दधिवाहन और करकण्डु आपस में पिता-पुत्र हैं। ____ अब तो पिता और पुत्र गले लगकर मिलना ही था। पद्मावती को साध्वी के रूप में देखकर 'दधिवाहन' का हृदय भी विरक्त हो उठा। अंग और कलिंग का एकमात्र शासक करकण्डु को बनाकर वह स्वयं दीक्षित हो गया। ___करकण्डु को गौओं से अधिक प्रेम था। उसकी गौशाला भी विशाल थी। राजा स्वयं उसकी देख-रेख में सजग रहता था। एक दिन एक श्वेत गौ-वत्स को देखकर राजा पुलकित हो उठा। राजा को वह बहुत ही प्रिय लगा। राजा की आज्ञा से उसकी अधिक सार-सम्हाल होने लगी। थोड़े ही दिनों में वह एक पुष्ट कंधों द्वारा सबल वृषभ बन गया। सारी गौशाला में वही और वही नजर आता था। राजा करकण्डु भी उसे देखकर बहुत प्रसन्न होता था। कुछ वर्षों तक राजा अन्यान्य कर्मों में अधिक लगा रहने के कारण गौशाला की ओर नहीं आ सका। एक दिन गया, तब वह वृषभ नजर नहीं आया। पूछने पर बताया गया कि वह सामने जो मरियल-सा वृषभ बैठा है, जिस पर मक्खियाँ भिनभिना रही हैं, यह वही वृषभ है। उसकी यह दशा वृद्धावस्था के कारण हो गई है। राजा के विचारों में अकल्पित ज्वार आया। वृद्धावस्था के इस दृश्य ने दिल को झकझोर डाला। चिन्तन में सराबोर हो उठा। सहसा जाति-स्मरणज्ञान हो गया—मन-ही-मन संयम स्वीकार कर लिया। देवताओं ने करकण्डु को मुनि-वेश प्रदान किया। करकण्डु वन की ओर चल पड़े और प्रत्येकबुद्ध बनकर पृथ्वी पर विचरण करने लगे। अन्त में केवलज्ञान प्राप्त करके मोक्ष में विराजमान हो गये। -उत्तराध्ययन, अ. १८ आवश्यक नियुक्ति १३११
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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