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________________ जैन कथा कोष ७३ ४५. कलावती देवशाल नगर के राजा विजयसेन के श्रीमती नाम की रानी थी। उनके एक पुत्र था—जयसेन तथा पुत्री थी कलावती। कलावती अपूर्व सुन्दर और गुणवती थी। जब वह विवाह योग्य हुई तो उसका चित्र लेकर एक चित्रकार शंखपुर देश के राजा शंख के पास गया। राजा शंख उस चित्र पर मोहित हो गया। पूछने पर चित्रकार ने बताया, जो भी पुरुष इस कन्या द्वारा पूछे गये चार प्रश्नों का उत्तर देगा, स्वयंवर में यह कन्या उसी के गले में वरमाला डालेगी। राजा मोहित तो था ही, उसने सरस्वती देवी की आराधना की। देवी ने प्रकट होकर बताया—'स्वयंवर-मण्डप के एक स्तंभ पर पुतली बनी होगी। उस पर हाथ रख देना। वह राजकुमारी के चारों प्रश्नों का उत्तर दे देगी।' राजा शंख ने स्वयंवर-मंडप में जाकर ऐसा ही किया। उसका विवाह राजकुमारी कलावती के साथ हो गया। राजा शंख और रानी कलावती बड़े प्रेम से रहने लगे। रानी कलावती गर्भवती भी हो गई। एक बार कलावती का भाई जयसेन वहाँ आया। अन्य अनेक वस्त्राभूषणों के अतिरिक्त उसने अपनी बहन को दो बहुमूल्य कंगन भी दिये। कंगन पहनकर वह बहुत खुश हुई। वह दासी से कहने लगी—'मुझ पर उसका कितना स्नेह है कि इतने कीमती और खूबसूरत कंगन भेंट किये हैं। उसके प्रेम को मैं शब्दों में नहीं कह सकती।' रानी के अन्तिम शब्द राजा शंख ने सुन लिये | वह उस समय उसके कक्ष के पास से ही गुजर रहा था। उसे यह भ्रम हो गया कि रानी किसी दूसरे पुरुष से प्रेम करती है। इस भ्रम के कारण राजा ने उसे जंगल में छुड़वा दिया और चाण्डालों से कहकर दोनों हाथ कटवा लिये। शोक के तीव्र आघात से रानी कलावती मूर्च्छित हो गई। जब उसे होश आया तो वह रुदन करने लगी। लेकिन उसके रुदन को सुनने वाला कौन था? स्वयं ही चुप हो गई। इसी दशा में वन में एक नदी के किनारे उसने पुत्र प्रसव किया। ___वह पुत्रवती तो बन गई, लेकिन पुत्र को उठाने और उसका पालन-पोषण करने के लिए उसके पास हाथ न थे। शोकार्त होकर उसने अपने शीलधर्म की दुहाई दी तो नदी की अधिष्ठात्री देवी ने उसके हाथ वापस दे दिये। उसने अपने पुत्र को उठा लिया और उसे स्तन-पान कराने लगी, तभी कुछ
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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