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७० जैन कथा कोष में ले जाकर फल-फूल खिलाये। इसके बाद वह पद्मावती को 'दत्तपुर' नगर की ओर ले चला। जब दूर से नगर दीखने लगा तब उसने कहा-'इस दत्तपुर नगर का स्वामी बहुत ही न्यायनिष्ठ और धर्मप्रिय है। वह तुम्हें 'चेटक' के पास पहुँचाने की सही व्यवस्था कर देगा। मैं भी आगे चलता, पर आगे जमीन जोती हुई है। मैं जोती हुई जमीन पर पैर नहीं रखता, अतः तुम चली जाओ।' ____ महारानी पद्मावती कलिंग देश के दत्तपुर नगर में पहुँची। नगर में इधरउधर फिर रही थी, इतने में कुछ साध्वियाँ नजर आयीं। वह उनके साथ चली गई। दु:खों से घिरे व्यक्ति पर उपदेश का प्रभाव शीघ्र ही होता है। अतः उसे उपदेश लग गया। वह साध्वी बन गई। पर संकोचवश गर्भ की चर्चा रानी ने किसी के सामने नहीं की। अपनी गुरुणीजी को भी नहीं बताई। यथासमय जब प्रसव-पीड़ा होने लगी, तब साध्वीश्री ने किसी विश्वस्त श्राविका के यहाँ सारी प्रसव-क्रिया परिसंपन्न की। एक सुन्दर और सौभाग्यवान पुत्र पैदा हुआ। साध्वी पद्मावती ने उस शिशु को दधिवाहन नामांकित मुद्रिका पहना दी तथा रत्नकंबल में लपेटकर श्मशान भूमि में ले जाकर भाग्य के भरोसे छोड़ दिया। जब वापस लौटी तब झाड़ी की ओट में खड़ी होकर देखने लगी कि देखें, इसका क्या होता है? इस शिशु को कौन ले जाता है? यह किसके यहाँ पलता
इतने में श्मशान संरक्षक चण्डाल आया और उसे अपने घर ले गया तथा अपन पुत्र माना। पद्मावती उस चाण्डाल के पीछे-पीछे जाकर उसका घर देख आयी तथा वापस लौटकर साध्वियों से कह दिया, मृत बालक उत्पन्न हुआ था अतः श्मशान भूमि में विसर्जित कर दिया। बात आयी-गयी हो गई।
चाण्डाल ने इसका नाम 'अववर्णिक' रखा। पर बालक अपने हाथ से अपने शरीर को खुजलाता अधिक था इसीलिए इसका नाम 'करकण्डु' पड़ गया। यही नाम अधिक प्रसिद्ध हुआ।
साध्वी पद्मावती बीच-बीच में चाण्डाल के घर की ओर जाकर उसे देख आती। बालक प्रतिभाशाली निकला। छः वर्ष की उम्र में ही पिता ने इसे श्मशान की रखवाली का काम सौंप दिया।
एक दिन श्मशान भूमि से होकर दो मुनि गुजरे । वहाँ एक पोटी (गाँठ) के बाँस को उगा देखकर गुरु ने शिष्य से कहा—'यह बाँस जब चार अंगुल