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६८ जैन कथा कोष कोई याचक वहाँ पहुँच चुका था। यों सात दिन तक कपिल वहाँ जाता रहा, पर सबसे पहले पहँचने का प्रसंग उसे नहीं मिला। ___ आठवें दिन आधी रात को ही सोना पाने की धुन में कपिल चल पड़ा। चन्द्रमा की चाँदनी चारों ओर छिटक रही थी। इसने ज्योंही राजमहल में घुसना चाहा, पहरेदारों ने उसे चोर समझकर पकड़ लिया। प्रात:काल कैदी के रूप में राजा के सामने प्रस्तुत किया। राजा के पूछने पर उसने सारी बात सच-सच बता दी। राजा को इसकी बात पर विश्वास हो गया। साथ ही इसकी समस्या सुनकर दया भी आयी। राजा ने इसे इच्छित माँगने के लिए कहा। कपिल ने घाड़ा सोचने का समय मांगा।
राजमहल के पीछे की वाटिका में सोचने के लिए कपिल बैठा। दो मासे सोने से मन बढ़ा, चार मासे माँग लूँ। चार से क्या होगा, यों आठ-सोलहबत्तीस-चौंसठ से बढ़ते-बढ़ते राजा का सारा राज्य माँगने को उतावला हो उठा। दूसरे ही क्षण विचार आया—'रे कपिल ! राजा ने तो तेरे पर दया दिखाकर मन इच्छित माँगने के लिए कहा। तू इतना अधम निकला कि उसका सर्वस्व ही हथियाने को आतुर हो उठा। धिक्कार है तुझे ! वह भी किसलिए? पत्नी के लिए? कौन किसकी पत्नी है? कौन किसका पुत्र है? आया था पढ़ने के लिए और कहाँ फंस गया?' चिन्तन की धारा बदली। वहीं वाटिका में चिन्तन में सराबोर कपिल ब्राह्मण से मुनि बने । मुनि से कपिल केवली बनकर राजसभा में उपस्थित हुए। राजा और राज-सभासद मुनि की अनासक्ति पर नतमस्तक
थे।
___ एक बार कपिल केवली कहीं विहार करके जा रहे थे। रास्ते में 'बलभद्र' आदि पाँच सौ तीस चोरों का गिरोह मिला | कपिल को पकड़कर संगीत सुनाने के लिए कहा। कपिल मुनि ने एक वैराग्योत्पादक प्रसंग' बहुत ही मृदु स्वर में गाया, जिससे उन चोरों के भी अन्तर्चा खुल गयो वे सारे-के-सारे कपिल मुनि के पास मुनि बन गये। उन सबने दीक्षा ग्रहण कर ली। यों अनेक जनों का उद्धार कर कपिल केवली मोक्ष पधारे।
-उत्तराध्ययन, अध्ययन ८
१. उत्तराध्ययन सूत्र का आठवां अध्ययन |