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जैन कथा कोष
है । देखो — तुम्हारे वेद-शास्त्रों में 'द' का मन्त्र आता है । 'द' का अर्थ दमन, दया, दान आदि त्रिरूप में किया है। यदि आत्मा ही न हो तो दमन किसका, दया किसकी तथा दान किसको और क्यों?'
यों अपने गुप्ततम सन्देह का प्रकटीकरण और निराकरण सुनकर इन्द्रभूति भगवान् महावीर के चरणों में आ झुके। अपने पाँच सौ शिष्यों सहित भगवान् महावीर के पास दीक्षा स्वीकार कर ली। महावीर के द्वारा त्रिपदी के माध्यम से विशाल ज्ञान राशि प्राप्त करने की क्षमता प्राप्त की । अगाध ज्ञान-निधि बने और प्रभु के प्रथम गणधर कहलाये । अनेक लब्धियों से सम्पन्न बने । बेले- बेले का तप स्वीकार कर भगवान् महावीर की सेवा में तल्लीन रहने लगे ।
स्वयं का सन्देह निवारण तथा लोकोपकार की भावना को लेकर लघु शिष्य की भाँति गौतम के महावीर से प्रश्न चलते ही रहते। छत्तीस हजार प्रश्नोत्तरों का संकलन तो एक भगवती सूत्र में आज भी उपलब्ध है। वैसे गौतम स्वामी का महावीर के प्रति अनुराग भी काफी था और इसी अनुराग के कारण गौतम स्वामी को केवलज्ञान की प्राप्ति नहीं हो रही थी। जबकि उनके बाद के दीक्षित तथा उन्हीं के द्वारा दीक्षित मुनियों को केवलज्ञान की प्राप्ति हो गई । इस निराशा में उद्भूत गौतम की खिन्नता का निवारण भी भगवान् महावीर समय-समय पर करते रहते ।
भगवान् महावीर का अन्तिम चातुर्मास पावापुरी में था । कार्तिक बदी अमावस्या के दिन गौतम स्वामी को प्रभु ने देवशर्मा ब्राह्मण को प्रतिबोध देने भेजा । गौतम उधर गये और पीछे से भगवान् महावीर का परिनिर्वाण हो गया। जब देवगण प्रभु का चरम कल्याणोत्सव मनाने आने लगे, तब गौतम को प्रभु के निर्वाण का पता लगा। गौतम स्वामी को विरह से व्यथित होना ही था । तत्क्षण प्रभु के शरीर के पास आकर करुण विलाप करने लगे। मीठे-कटु उलाहने भी दिये, पर कुछ ही क्षणों के बाद स्वयं को सँभाला। क्षपकश्रेणी आरूढ़ होकर केवलज्ञान प्राप्त कर लिया ।
बारह वर्ष तक कैवल्यावस्था में रहकर मोक्ष पधारे। गौतम स्वामी ने पचास वर्ष की अवस्था में भगवान् महावीर के चरणों में दीक्षा ली । ८० वर्ष की अवस्था में कैवल्य प्राप्त किया तथा बानवे वर्ष की अवस्था में, भगवान् महावीर के बारह वर्ष बाद मोक्ष पधारे । यद्यपि गौतम स्वामी भगवान् महावीर से आयु