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________________ जैन कथा कोष ४१ उन्हीं दिनों भगवान महावीर भी वहाँ पधारे । गौतम स्वामी पारणे के लिए गाँव में आए। जब उन्होंने आनन्द श्रावक के अवधिज्ञान की चर्चा सुनी तो उसके यहाँ पधारे । आनन्द ने वन्दना करके पूछा-भगवन् ! क्या अनशन में गृहस्थ को अवधिज्ञान उत्पन्न हो सकता है?' _ 'हाँ, हो सकता है।' गौतम गणधर ने बताया। ___ आनन्द ने कहा-'भगवन् ! मुझे भी अवधिज्ञान हुआ है। मैंने पूर्व, पश्चिम और दक्षिण में पाँच सौ योजन लवण समुद्र के अन्दर तक, उत्तर में चूल हिमवन्त पर्वत तक तथा ऊपर सौधर्म स्वर्ग और नीचे प्रथम नरक के लौलुच्य नामक नरकवास को जाना-देखा है।' ___ गौतम सुनकर चौंके और बोले—'गृहस्थ को इतना विपुल अवधिज्ञान नहीं हो सकता है। तुम्हारा यह मिथ्या भाषण हुआ है। इसलिए इसकी आलोचना करो।' ___ आनन्द ने विनम्र स्वर में पूछा-'प्रायश्चित सत्य का होता है या मिथ्या का?' 'असत्य का।' 'तब तो भगवन् आप ही ऐसा करिये।' आनन्द की दृढ़तापूर्वक बात सुनकर गौतम भगवान महावीर के पास आये। सारी बात कही। महावीर ने कहा-'हाँ, उसे उतना ही अवधिज्ञान हुआ है। तुम्हारे द्वारा ही असत्य भाषण हुआ है। अत: आनन्द से क्षमा-याचना करो।' गौतम तुरन्त आनन्द के पास आये और उसे सत्य बताते हुए कहा—'मैं वृथा विवाद के लिए तुमसे क्षमा-याचना चाहता हूँ।' । __ आनन्द से सविनय क्षमा याचना करके गौतम ने अपनी महानता का परिचय दिया। यों आनन्द श्रावक ने बीस वर्ष तक श्रावक-व्रतों का पालन किया। अन्त में एक महीने का समाधिपूर्वक अनशन करके प्रथम स्वर्ग में पैदा हुआ। वहाँ से महाविदेह क्षेत्र में जाकर मोक्ष में जाएगा। --उपासक दशा १ ३१. आर्द्रककुमार अगाध समुद्र के बीच 'आर्द्रकपुर' नाम का एक अनार्य नगर था, जिसके
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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