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४० जैन कथा कोष
२६. आनन्द (बलदेव) '
दक्षिण भरतक्षेत्र में चक्रपुर नाम का एक समृद्धि - सम्पन्न नगर था । वहाँ राजा महाशिर राज्य करता था। वह राजा बुद्धि, कला और प्रतिभा में अपने समकालीन राजाओं में अग्रगण्य था । उसकी दो रानियाँ थीं— एक वैजयंती और दूसरी लक्ष्मीवती । रानी वैजयंती ने एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया, उसका नाम
आनन्द रखा गया ।
आनन्द छठे बलदेव थे और वे छठे वासुदेव पुरुष पुंडरीक के बड़े भाई थे। इन्होंने अपने छोटे भाई पुरुष पुंडरीक के साथ प्रतिवासुदेव बलि से युद्ध किया। इसके बाद इन्होंने छोटे भाई पुरुष पुंडरीक वासुदेव के साथ विजययात्रा की ।
बाद में जब इनके छोटे भाई पुरुष पुंडरीक का देहान्त हो गया तो इन्हें बहुत दुःख हुआ। छह महीने तक ये मोहग्रस्त होकर शोकाभिभूत रहे, इन्हें अपने शरीर की भी सुधि न रही, विवेक लुप्त हो गया ।
तत्पश्चात् जब इनका शोकावेग कम हुआ तो इन्होंने तीर्थंकर अरनाथ के शासन में दीक्षा ग्रहण कर ली। इन्होंने घोर तप किया और केवलज्ञान का उपार्जन करके निर्वाण पद प्राप्त किया ।
इनका कुल आयुष्य ८५ हजार वर्ष का था । — त्रिषष्टि
शलाकापुरुष चरित्र
३०. आनन्द श्रावक
भगवान् महावीर के प्रमुख श्रावक का नाम 'आनन्द' था । उसने भगवान महावीर से श्रावक के बारह व्रत ग्रहण किए थे। उसकी प्रेरणा से उसकी धर्मपत्नी शिवानन्दा ने भी श्राविकाव्रत ग्रहण किए थे। वह 'वाणिज्य' ग्राम के निकट : कोलाक सन्निवेश' में रहने वाला 'पटेल' जाति का था, पर था समृद्ध । उसकी समृद्धि इससे ही आँकी जा सकती है कि उसके पास बारह करोड़ स्वर्ण मुद्राएँ तथा चालीस हजार गाएँ थीं।
अपने व्रतों का सानन्द और सकुशल पालन करते-करते उसने आमरण अनशन किया। अनशन में उसे भावों की विशुद्धता से विपुल अवधिज्ञान प्राप्त हुआ।