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जैन कथा कोष २३ ।। तक संयम का पालन कर विविध तपस्याओं के द्वारा कर्मों के भार को हल्का किया। फिर आयुष्य पूर्ण कर विजय नामक अनुत्तर विमान में पैदा हुआ। वहाँ से महाविदेह में मनुष्य बनकर संयम का पालन करके मोक्ष प्राप्त करेगा। ___महाराज श्रेणिक को अभयकुमार की दीक्षा से एक अमिट आघात लगा; क्योंकि वैसा बुद्धिमान मन्त्री उसको मिलना कठिन था। __ जैन परम्परा में आज भी, दीपमालिका के दिन पूजन करते समय बहियों में लिखते हुए याचना की जाती है—'अभयकुमार जैसी बुद्धि।'
-धर्मरत्न प्रकरण –त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र
१६. अभिनन्दन भगवान
सारिणी जन्म-नगर अयोध्या दीक्षा दिन
माघ सुदी १२ पिता संवर राजा केवलज्ञान
पौष सुदी १४ माता
. सिद्धार्था चारित्र पर्याय ८ पूर्वांग कम १ लाख पूर्व जन्म-तिथि माघ सुदी २ . कुल आयु
५० लाख पूर्व कुमार अवस्था १२,५०,००० पूर्व निर्वाण वैशाख सुदी ८ सम्मेद शिखर राज्यकाल ३६,५०,००० पूर्व, ८ पूर्वांग चिन्ह ।
वानर अभिनन्दन प्रभु इस चौबीसी के चौथे तीर्थंकर हैं। ये जयंत नामक तीसरे अनुत्तर विमान से आये थे। प्रभु के गर्भ में आते ही सबका अभिनन्दन हुआ, सबको आनन्द हुआ, इसीलिए प्रभु का नाम भी अभिनन्दन रखा गया। युवावस्था में अनेक रानियों के साथ प्रभु का पाणिग्रहण संस्कार हुआ। बहुत लम्बे समय तक राज्य का परिपालन कर प्रभु ने दीक्षा स्वीकार की। १८ वर्ष छद्मस्थ अवस्था में रहे । पौष सुदी १४ को केवलज्ञान प्राप्त किया। आयु के
अन्त में एक मासिक अनशन पूर्ण कर एक हजार साधुओं के साथ सम्मेदशिखर पर्वत पर प्रभु का परिनिर्वाण हुआ।
धर्म-परिवार ११६ वादलब्धिधारी
११,००० केवली साधु १४,००० वैक्रियलब्धिधारी
१,६०० केवली साध्वी २८,००० साधु
३,००,०००
गणधर