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________________ २४ जैन कथा कोष मनः पर्यवज्ञानी अवधिज्ञानी पूर्वधर -११,६५० साध्वी ६,८०० १,५०० ६,३०,००० २,८८,००० ५,२७,००० - त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र श्रावक श्राविका २०. अभीचिकुमार अभीचिकुमार वीतभय नगरी के राजा उदायन का पुत्र था । वीतभय नगरी सिन्धु- सौवीर देश की राजधानी थी। राजा उदायन भगवान् महावीर के उपदेश से प्रतिबुद्ध हो गया । उसने दीक्षा ग्रहण करने से पहले सोचा कि राज्य करना तो पाप का कारण है, साथ ही शासक में दृढ़ता तथा उचित मात्रा में कठोरता भी होनी चाहिए। अभीचिकुमार सरल और कोमल हृदय वाला है। वह शासन को सही ढंग से नहीं सँभाल सकता, इसलिए उसने अपने भान्जे केशी को सिंहासन दिया, अभीचिकुमार को नहीं दिया । अभीचिकुमार ने अपने पिता की इस भावना को नहीं समझा। अपना अधिकार यानी राज्यसिंहासन न मिलने से वह बड़ा निराश हुआ। उसे पिता पर क्रोध भी आया, किन्तु वह अपने क्रोध को प्रकट न कर सका । केशी के अधीन रहना उसे अपना अपमान लगा । इसलिए उसने वीतभय नगरी छोड़ दी । वहाँ से वह राजगृही आ गया । राजगृही में उस समय श्रेणिक का पुत्र कूणिक राज्य कर रहा था । कूणिक उसकी मौसी का पुत्र यानी उसका भाई था, क्योंकि कूणिक की माता चेलना और उसकी माता पद्मावती दोनों बहनें थीं। अभीचिकुमार राजगृही में रहने लगा । वहाँ उसका सम्पर्क जैन-मुनियों से हुआ। मुनियों के प्रभाव से उसने श्रावकव्रत ग्रहण कर लिये और श्रावकधर्म का पालन करने लगा । आयु के अन्त समय में उसने पन्द्रह दिन का अनशन किया। लेकिन अपने हृदय से पिता के प्रति रोष को न निकाल सका, इस दोष की उसने आलोचना भी नहीं की; और मन में पिता के प्रति क्रोध लिये हुए ही उसने कालधर्म प्राप्त कर लिया । श्रावकव्रतों को पालने के कारण उसे देवगति प्राप्त हुई । देवगति से च्यवकर वह महाविदेह में उत्पन्न होगा और वहाँ अपने इस पूर्वकृत्य अर्थात् पिता के प्रति रोष की आलोचना करेगा तथा संयम की आराधना करके मुक्त होगा । - त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र, पर्व १०
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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