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२२ जैन कथा कोष
वैशाली नगरी के महाराज 'चेटक' की यह प्रतिज्ञा थी कि वे अपनी किसी भी पुत्री की शादी किसी विधर्मी राजा के साथ नहीं करेंगे। महाराज 'श्रेणिक' की इच्छा हुई कि मैं महाराज 'चेटक' की पुत्री 'सुज्येष्ठा' से शादी करूँ । सुज्येष्ठा भी महाराज श्रेणिक के प्रति आकर्षित थी । इस चिन्ता को भी 'अभयकुमार' ने अपनी कुशलता से मिटाने का प्रयत्न किया और 'सुज्येष्ठा' का हरण हो — ऐसा साज बाज बनाया। लेकिन ऐन वक्त पर सुज्येष्ठा पीछे रह गई और उसके बदले उसकी छोटी बहन चेलणा का हरण हुआ और उसके साथ ही राजा का पाणि-ग्रहण हुआ ।
भगवान् महावीर का उपदेश सुनकर अभयकुमार संयम लेने को उत्सुक हुआ और पिता से आज्ञा चाही । महाराज श्रेणिक ने अभयकुमार को राज्य सौंपना चाहा, पर अभयकुमार का आग्रह संयम के लिए ही रहा। तब राजा ने कहा- 'जब मैं तुझे 'जा' कह दूँ, तब दीक्षा ले लेना ।'
एक बार ऐसा प्रसंग बना कि चेलणा ने उद्यान में एक मुनि को ध्यान में खड़े देखा। रात के समय राजा और रानी सोये हुए थे। सर्दी बहुत अधिक थी । रानी का हाथ कम्बल से बाहर रह गया और ठंड से ठिठुर गया । नींद में ही रानी के मुँह से निकला - ' उसका क्या हाल होगा?' राजा चौंका और शंका का शिकार हो गया। राजा सोचने लगा- हो न हो रानी किसी अन्य पुरुष पर मुग्ध है। उसकी चिन्ता के लिए ऐसा कह रही है कि उसका हाल क्या होगा? राजा का मन फट गया और 'अभयकुमार' को प्रातः आदेश दिया कि चेलणा के महलों को जला दो । यों आदेश देकर श्रेणिक भगवान् का उपदेश सुनने चला गया। भगवान ने राजा के संशय को मिटाने के लिए प्रसंगवश कहा- ' -' महाराज चेटक की सातों पुत्रियाँ सती हैं ।' यह सुनकर श्रेणिक चौंका और अपने किये पर अनुताप करने लगा ।
उधर अभयकुमार ने बहुत ही चातुर्य से काम लिया और महारानी के महलों के पास फूस की झोपड़ियाँ जलाकर प्रभु के दर्शनार्थ चल पड़ा। वह भी इसलिए कि मुनित्व के आदेश प्राप्ति के लिए यही समय सर्वथा उपयुक्त है। उधर समवसरण से लौटते हुए श्रेणिक ने दूर से महलों से उठता धुआँ देखा तो विह्वल हो उठा और सामने से अभयकुमार आता हुआ मिला, तब श्रेणिक ने गुस्से से कहा - ' जा रे जा ।' अभयकुमार को और क्या चाहिए था? प्रभु के पास पहुँचकर सारी स्थिति कही और संयम धारण कर लिया । पाँच वर्ष
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