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________________ जैन कथा कोष २१ 'महाबल' के सामने सारा दुखड़ा रोया । राजा न भी 'अभग्गसेन' को पकड़ने के बहुत प्रयत्न किये, पर उसके सभी प्रयत्न निष्फल रहे । अन्त में राजा ने एक युक्ति निकाली। दस दिन का महोत्सव मनाने की घोषणा की और उसमें अभग्गसेन को भी अपने साथियों सहित आमंत्रित किया । राजा ने अवसर पाकर उन सबको मद्य और माँस खिलाकर बेभान बना दिया। यों बेहोशी में उन्हें पकड़ लिया और शहर में घुमाकर शूली पर चढ़ाने का दण्ड दे दिया। उधर से भगवान् महावीर के प्रथम गणधर गौतम स्वामी भिक्षार्थ जा रहे थे । उसे यों वध-स्थल की ओर जाते हुए देखकर मन में खिन्न हुए। भगवान् महावीर के पास आकर उन्होंने पूछा- 'भंते ! इस अभग्गसेन चोर ने क्या पाप किए थे, जिसके कारण यह शूली पर लटकाया जा रहा है?' प्रभु ने कहा'गौतम ! पूर्वभव में यह इसी नगर में निन्हव नामक वणिक था । अण्डों का बहुत बड़ा व्यापारी था। अण्डों को सेंककर व तलकर खुद भी खाता और दूसरों को भी खिलाता था । एक हजार वर्ष की आयु पूर्ण कर उस क्रूर कर्म के कारण तीसरी नरक में गया । वहाँ से निकलकर यह अभग्गसेन चोर हुआ है यहाँ भी इसके घृणित कार्यों से राजा ने इसकी यह दशा की है। अधिक क्या ? आज तीसरे प्रहर में अपनी २७ वर्ष की आयु में मरकर यह प्रथम नरक में जायेगा । वहाँ से निकलकर अनेक भवों में भ्रमण करता हुआ अन्त में वाराणसी नगरी में एक सेठ के यहाँ जन्म लेगा और वहाँ संयम का पालन कर मोक्ष में जाएगा।' — विपाकसूत्र ३ १८. अभयकुमार 'अभयकुमार' राजगृही के महाराज 'श्रेणिक' की रानी 'नन्दा' का पुत्र था । महाराज श्रेणिक ने अपने पाँच सौ प्रधानों में अभयकुमार को मुखिया बनाया । अभयकुमार अपनी बुद्धिमत्ता, निपुणता व कर्त्तृत्व के बल पर सारी जनता का प्रिय बन गया। अनेक अपराधियों को अपने बुद्धि-कौशल से खोज - खोजकर उसने उन्हें उचित दण्ड दिलवाया और जनता को निश्चित बना दिया । धारिणी, चेलणा आदि विमाताओं के दोहद भी अपने तप और युक्ति से पूरे करके उन्हें सन्तुष्ट किया ।
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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