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________________ २० जैन कथा कोष उसे वैक्रियलब्धि, अवधिज्ञान-लब्धि तथा सौ घरों का भोजन पचा सके, ऐसी लब्धि भी प्राप्त हो गई थी। वह अपनी वैक्रियलब्धि से एक ही समय में १०० घरों का भोजन प्राप्त कर सकता था और अलग-अलग सौ स्थानों पर एक ही समय में दिखाई दे सकता था। उसके तपोजन्य ऋद्धि प्रभाव से आकर्षित होकर उसके सात सौ शिष्य बन गये। एक बार अंबड अपने सात सौ शिष्यों के साथ गंगा नदी पार करके. कंपिलपुर नगर से पुरिमताल नगर जाने के लिए चल पड़ा। गर्मी अधिक थी। सभी रास्ता भूलकर भयंकर जंगल में जा पहुँचे। पास में जो पानी था, वह समाप्त हो गया। सभी प्यास से व्याकुल हो उठे। यद्यपि गंगा नदी पास में बह रही थी, वे सचित जल भी पी सकते थे, पर कोई वस्तु वे तब ही लेते थे जब कोई उन्हें आज्ञा देने वाला हो अर्थात् वे अदत्त वस्तु नहीं ले सकते थे। आज जंगल में पानी लेने की आज्ञा देने वाला कोई नजर नहीं आ रहा था। कुछ देर तो इधर-उधर देखते रहे, जब कोई आता नजर नहीं आया तो ये सारे प्यास से व्याकुल हो बैठे। प्राण-पखेरू शीघ्र ही उड़ जायेंगे, ऐसा लग रहा था। तब सभी ने उस नदी के रेत में बिछौना बिछाकर भगवान् महावीर की वन्दना की और अनशन स्वीकार कर लिया। मन-ही-मन अपने पूर्वकृत्यों की आलोचना की और संथारा ग्रहण कर लिया। थोड़े ही समय में सब-के-सब कालधर्म को प्राप्त होकर पंचम स्वर्ग में पैदा हुए। अंबड भी पाँचवें स्वर्ग में पैदा हुआ। वहाँ से महाविदेहक्षेत्र में उत्पन्न होकर मुक्त होगा। –औपपातिक सूत्र १७. अभग्गसेन चोर परिमताल नगर में 'महाबल' नाम का राजा था। उस नगर से थोड़ी दूर पर एक चोर पल्ली थी। गुफाओं और पर्वतों के बीच में आ जाने से वह स्थान अत्यधिक भयावह हो गया था। उस चोर पल्ली का मुखिया विजय चोर ५०० चोरों का स्वामी था। ___वह महा अधर्मी था। लोगों को लूटना और नृशंसता से गाँवों को जलाना आदि उसका प्रतिदिन का कार्य था। उसके पुत्र का नाम था अभग्गसेन, जो क्रूरता में अपने पिता से भी बहुत बढ़-चढ़कर था। 'अभग्गसेन' पुरिमताल की प्रजा को बहुत पीड़ित कर रहा था। पुरिमतालवासियों ने अपने महाराज
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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