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________________ जैन कथा कोष ३३१ दें तो अष्टापद पर्वत सुरक्षित हो जाएगा। जब साठ हजार पुत्रों ने खाई खोदकर गंगा का पानी उसमें भरना चाहा तब नागकुमार देवों के भवनों में वह पानी जाने लगा। देवताओं ने ऐसा करने के लिए मनाही की। वे कब मानने वाले थे ! नागकुमार देव कुपित हो उठे। साठ हजार पुत्रों को एक साथ ही जलाकर भस्म कर दिया। जब सब पुत्रों की राख हो गई, तब देवता ने सोचा—अब यह संवाद सुनकर महाराज सगर पता नहीं क्या अनिष्ट कर दें। इसलिए इस दुःसंवाद की खबर उसके पास कैसे पहुँचाई जाए? सगर को संवाद देने के लिए इन्द्र ने एक ब्राह्मण का रूप बनाया । सगर के सामने बैठकर बहुत बुरी तरह बिसूर-बिसूरकर रोने लगा। पूछने पर ब्राह्मण ने सगर से कहा-'महाराज ! मेरा एकाकी पुत्र चल बसा।' सगर ने धैर्य बँधाते हुए कहा—'भाई ! धैर्य रखो। मरा हुआ जीवित थोड़े ही हो सकता है? इस तरह विलाप करने से क्या होगा?' ब्राह्मण ने कहा-'ठीक है, महाराज ! आपके तो साठ हजार पुत्र हैं। एक मर भी जाये तो फर्क नहीं पड़ता। पर मेरे तो इकलौता ही था।' सगर ने कहा-'मरे हुए के पीछे मरा थोड़े ही जाता है। एक क्या, मेरे तो साठ हजार पुत्र भी मर जायें तो भी मैं धैर्य रखंगा।' तब इन्द्र अपने रूप में प्रकट हुआ। सारा वृत्तान्त सुनाकर पुत्रों के मरने की सूचना दी। साठ हजार पुत्रों की यों दु:खद मृत्यु सुनकर सगर को अकल्पित दुःख हुआ। देवेन्द्र ने बहुत धैर्य बंधाते हुए शान्त रहने के लिए कहा, किन्तु पुत्रों की मृत्यु से सगर का मन संसार से बिल्कुल ही उचट गया। अजितनाथ भगवान् के पास दीक्षा लेकर उत्कृष्ट तपस्या की। साधना के द्वारा केवलज्ञान तत्पश्चात् निर्वाण प्राप्त किया। -उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन १८ -त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र १६५. सनतकुमार चक्रवर्ती 'हस्तिनापुर' के महाराज 'अश्वसेन' की महारानी का नाम 'सहदेवी' था। महारानी ने चौदह स्वप्नों से सूचित एक सौभाग्यवान्, रूपवान पुत्र को जन्म दिया। पुत्र का नाम रखा गया सनतकुमार'। सनतकुमार पिता की मृत्यु के बाद
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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