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________________ ३३० जैन कथा कोष __देवता ने वैसा ही किया। दूसरे-तीसरे पुत्र को भी मारकर वैसे ही किया। सकडालपुत्र फिर भी अविचल रहा। अन्त में उसकी पत्नी अग्निमित्रा को मारने को उद्यत हुआ, तब वह उसे पकड़ने के लिए शोर मचाता हुआ उठा। ज्योंही वह दौड़ा, त्योंही एक खम्भे से टकरा गया। सकडालपुत्र की चिल्लाहट सुनकर अग्निमित्रा अन्दर से आयी। पति को समझाते हुए कहा—हो न हो देव परीक्षा करने आया था। आप चिन्ता न करें। सब कुशल है। तीनों पुत्र सोये हुए हैं। आप अपने व्रत में दृढ़ता रखिये। जो अतिचार लगा है, उसकी आलोचना कीजिए। सकडालपुत्र पुनः दृढ़ बना। पत्नी के लिए भी मन में जो अनुरक्ति थी, उसे मिटाने का प्रयत्न करने लगा। उसने श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं का वहन भी किया। अन्त समय में समाधिभाव से मृत्यु को प्राप्त कर सौधर्मकल्प में देवता बना। वहाँ से महाविदेह में उत्पन्न होकर निर्वाण प्राप्त करेगा। -उपासकदशा ५ .१६४. सगर चक्रवर्ती 'अयोध्या' नगरी के महाराज का नाम था 'विजय'। उनके एक भाई था, जिसका नाम था 'सुमित्र' । 'सुमित्र' की महारानी 'यशोमती' ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम रखा गया 'सगर'। वैसे महाराज 'विजय' की महारानी 'विजया' ने भी एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम था 'अजित'। संयोग की बात, दोनों का जन्म एक ही दिन हुआ। दोनों ही चौदह स्वप्नों से सूचित आये । 'अजित' दूसरे तीर्थकर बने तो 'सगर' दूसरे चक्रवर्ती। ___ महाराज 'विजय' अपना राज्य 'अजितनाथ' को सौंपकर मुनि बन गये, साथ में 'सुमित्र' भी। 'अजितनाथ' कई वर्ष तक राज्य करके अपना राज्य सगर को सौंपकर स्वयं मुनि बन गए और केवलज्ञान प्राप्त करके तीर्थ की स्थापना की। __आयुधशाला में चक्ररत्न पैदा होने पर सगर छह खण्ड में अपना आधिपत्य स्थापित करने चल पड़ा। सगर के साठ हजार पुत्र थे। सागर दिग्विजय के लिए गया हुआ था। उधर सगर के पुत्रों ने अष्टापद पर्वत के पास एक खाई खोदने का विचार किया। उन्होंने सोचा-इस खाई में गंगा के प्रवाह को मोड़
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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