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________________ जैन कथा कोष ३२३ अपने पिता के विचारों का ही समर्थन किया । अतः राजा प्रसन्न हो गया और उसने उसका विवाह उसके इच्छित वर शंखपुर के राजकुमार अरिदमन के साथ कर दिया । किन्तु मैनासुन्दरी ने अपने पिता के विचारों का समर्थन नहीं किया - सुख-दुःख का कारण प्राणी के अपने कर्मों को बताया। इस पर राजा प्रजापाल उससे नाराज हो गया। उसने उसका विवाह कोढ़ी उम्बर राणा के साथ कर दिया। मैनासुन्दरी इस दुखद परिस्थिति में न घबराई, न निराश हुई। उसने नवपद की आराधना की और न केवल पति को वरन् उन सभी सात सौ कोढ़ियों को स्वस्थ कर दिया। सभी के कोढ़ जड़-भूल से नष्ट हो गये और उनका शरीर कुंदन के समान दमकने लगा । श्रीपाल की माता भी आ गयी। वह अपने पुत्र और पुत्रवधू को देखकर बहुत हर्षित हुई । इसके बाद श्रीपाल विदेश यात्रा को चला गया। वहाँ उसने रैनमंजूषा, गुणमाला आदि सात राजकन्याओं से और विवाह किया, अत्यधिक यशसम्मान और ऋद्धि-समृद्धि प्राप्त की। उसने चतुरंगिणी सेना भी तैयार कर ली । जब वह लौटकर आया तो उसके वैभव को देखकर राजा प्रजापाल ने भी स्वीकार किया कि वास्तव में किये हुए कर्म ही व्यक्ति को सुख-दुःख देते हैं । उसका अहंकार झूठा था । उसके बाद श्रीपाल का युद्ध उसके चाचा वीरदमन से हुआ। वीरदमन की पराजय हुई। पराजय से खिन्न होकर उसने वहीं मुनिव्रत स्वीकार कर लिये । श्रीपाल ने नौ सौ वर्ष तक राज्य किया । अपने बड़े पुत्र त्रिभुवनपाल को राज्य देकर संयम ले लिया। मैनासुन्दरी भी साध्वी बन गई। तपाराधना करके श्रीपाल मुनि ने आयु पूर्ण किया और नौवें देवलोक में उत्पन्न हुए । नवें भव में इन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी । - रत्नशेखर सूरिकृत सिरि सिरिवाल कहा १९०. श्रेणिक राजा 'कुशाग्रपुर' नगर के स्वामी महाराज 'प्रसेनजित्' के सौ पुत्र थे, जिनमें सबसे ज्येष्ठ पुत्र का नाम था ' श्रेणिक' । महाराज 'प्रसेनजित्' ने एक बार एक पल्लीपति की कुमारी से दस शर्त पर विवाह किया कि उसका पुत्र सिंहासन
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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