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________________ २६६ जैन कथा कोष बार देख रहा है। मैं तेरा अभिप्राय समझ गया हूँ। तेरी नजर यव (यवराजा) पर है। ऐसा विचार आते ही राजकुमार ने मन में समझ लिया कि मुनि ज्ञानी हैं, ये मेरा इरादा जान चुके हैं। संभवतः यह मेरी बहन के बारे में भी कुछ जानते हों। तभी राजर्षि ने दूसरी गाथा गुनगुनाई इओ गया, तओ गया, जोइज्जती न दीसई। वयं एवं वियाणामो, अगडे पडिया अणुल्लिया।। इस गाथा के अर्थ पर विचार करते हुए राजकुमार के हृदय में हलचल मच गई। उसने अणुल्लिया का अभिप्राय अपनी बहन अणोलिका से लगाया। वह सभी जगह अणोलिका की खोज करा चुका था, सिर्फ मन्त्री का भवन ही बाकी था। उसने समझा कि मन्त्री ने ही अपने तलघर में मेरी बहन को कैद कर रखा होगा। तभी राजर्षि ने तीसरी गाथा गायी सकुमालय भद्दलया, रत्ति हिंडणसीलया। मम समासाओ नत्थि भयं, दीहपिट्ठाओ ते भयं ।। 'दीहपिट्ठाओ' शब्द से राजकुमार ने मन्त्री दीर्घपृष्ठ का नाम समझा। अब तो उसे विश्वास हो गया कि मन्त्री ही मेरा शत्रु है। इसीलिए वह मुझसे पितृवध जैसा जघन्य और निंद्य कार्य करवाना चाहता है। ___ वह वहाँ से उल्टे पांवों लौट आया। प्रातः होते ही उसने मन्त्री के घर की तलाशी ली तो तलघर में अणोलिया मिल गई। मन्त्री के इस कुकृत्य से राजकुमार का रोष तो उमड़ा ही; जनता में भी रोष का तूफान उमड़ आया। राजा-प्रजा ने मिलकर मंत्री को सपरिवार देश-निकाले का दण्ड दिया। यवराजर्षि ने सुबह प्रवचन दिया तो वहाँ समस्त जनता उमड़ पड़ी। राजर्षि ने बताया कि किस तरह तीन गाथाओं ने अनर्थ होने से बचा लिया। ___यवराजर्षि के मन में तो ज्ञानार्जन के प्रति उत्साह जागा ही, उनकी प्रेरणा से नगर के सभी आबाल-वृद्ध ज्ञानार्जन में जुट गये। इस घटना से रानी धारिणी और राजकुमार गर्दभिल्ल को भी संसार से विरक्ति हो गई। धारिणी ने अपने भान्जे के साथ अगोलिका का विवाह कर दिया और उसे राजा बनाकर त्याग-मार्ग अपना लिया। माता के साथ गर्दभिल्ल भी प्रव्रजित हो गया।
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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