________________
जैन कथा कोष २६५ इन तीनों गाथाओं को गुनगुनाने लगा।
राजकुमार गर्दभिल्ल यद्यपि बालक था, लेकिन कर्त्तव्य के प्रति असावधान नहीं था। वह रात को नगर में घूमकर प्रजा के सुख-दुःख को जानने का प्रयास करता रहता था। इधर यव राजा के साधु बनने के बाद मन्त्री दीर्घपृष्ठ के विचार कलुषित हो गये थे। यह तो वह निमित्तज्ञ के भविष्य-कथन से जान ही गया था कि अणोलिका से विवाह करने वाला पुरुष बड़े राज्य का स्वामी बनेगा। उसके हृदय में भी लालच समा गया। अणोलिका के साथ विवाह करने की इच्छा से प्रेरित होकर उसने अपने विश्वस्त सेवकों से उसका अपहरण करा लिया और उसे अपने भवन के तलघर में डाल दिया। भाई ने बहन की बहुत खोज कराई पर सफल न हो सका। ___ इधर यवराजर्षि के नगर में आने से मन्त्री घबरा गया। उसने सोचाकहीं राजर्षि ने अपने ज्ञानबल से मेरा भाण्डा फोड़ दिया तो मैं कहीं का न रहूंगा। इसलिए यवराजर्षि को ही ठिकाने लगवा देना चाहिए। अपनी योजना को कार्यान्वित करने के लिए उसने राजकुमार गर्दभिल्ल को चुना। रात को ही वह उसके पास पहुँचा और यह कहकर उसे भड़काया कि तुम्हारे पिता संयम नहीं पाल सके, इसलिए वापस आये हैं। वे तुम्हें मारकर सिंहासन छीनना चाहते हैं। इसलिए तुम्हारा कर्तव्य है कि तुम पिता को पहले ही ठिकाने लगा दो। गर्दभिल्ल ने पिता को मारना अधर्म बताया तो मन्त्री बोला—तुम्हारे पिता भी तो. धर्म का मार्ग छोड़कर राज्य छीनने आये हैं। ऐसे अधर्मी पिता को मारना अधर्म नहीं है।
यह बात गर्दभिल्ल की समझ में आ गई। वह नंगी तलवार लेकर यवराजर्षि को मारने कुंभकार के घर जा पहुँचा। दबे पाँव इधर-उधर घूमने लगा और अन्दर जाकर राजर्षि को मारने की योजना बनाने लगा। तब तक उसके कान में अन्दर से गुनगुनाहट की आवाज सुनाई दी। राजकुमार ने एक बड़े छेद में से झांका तो देखा राजर्षि गुनगुना रहे थे। वह कान लगाकर सुनने लगा। राजर्षि गाथा गुनगुना रहे थे
अवधससि धससि धुत्ता, ममं चेव निरक्खसि।
लक्खिओ ते अभिप्पाओ, जवं पेच्छसि गद्दहा ।। इस गाथा को सुनकर राजकुमार ने सोचा—राजर्षि मुझे ही संबोधित करके कह रहे हैं—हे गदहा (गर्दभिल्ल) ! तू इधर-उधर घूम रहा है, मुझको बार