SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 303
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८६ जैन कथा कोष तू राजा का पुत्र हुआ है। मेघ ! पशु-भव में तो तूने सारी बातें सुधारीं । इस मनुष्य-जीवन में थोड़े से कष्ट से घबराकर बात बिगाड़ रहा है। जरा सोच, कितनी विचार की बात है?' ___ 'मेघमुनि' को प्रभु की वाणी सुनते-सुनते जाति-स्मरणज्ञान हो आया। झुलसते हुए मैदान को देखकर रोंगटे खड़े हो गये। प्रभु के पैरों में गिरकर दोषों की आलोचना की। मन को स्थिर करके पुनः व्रतों में सुस्थिर बने। अपनेआपको संघ के प्रति समर्पित करते हुए 'मेघमुनि' ने कहा—'प्रभुवर ! मैं अपनी इन दो आँखों के सिवा समूचा शरीर साधु-संतों की परिचर्या के लिए समर्पित करता हूँ। आप जैसे भी चाहें इसका उपयोग करें। केवल ये दो आँखें मैं ईर्याशोधन के लिए अपने अधिकार में रखता हूँ शेष सारा शरीर आपके लिए समुपस्थित है।' यों समर्पित होकर उत्कट परिचर्या, संयम, साधना, तप, आराधना में जुटे। ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। गुणरत्न संवत्सर आदि विभिन्न प्रकार के तप किये । अन्त में सब संतों से क्षमायाचना करके प्रभु की आज्ञा लेकर एक महीने के अनशन में समाधिमरण प्राप्त किया और सर्वार्थ-सिद्ध विमान में पैदा हुए। वहाँ से महाविदेह में उत्पन्न होकर मोक्ष में जाएंगे। –ज्ञाताधर्मकथा, अ. १ १६२. मेतार्य गणधर 'वत्स' देश में तुंगिक नाम का एक नगर था। वहाँ कौंडिल्य गोत्र के कुछ ब्राह्मण रहते थे, जिनमें एक 'दत्त' नाम का ब्राह्मण था। उसकी पत्नी का नाम था वरुणदेवा । 'वरुणदेवा' ने एक सुकोमल, सौभाग्यवान पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम रखा 'मेतार्य'। मेतार्य अनेक शास्त्रों में पारंगत बने। वैदिक शास्त्रों के अधिकारी विद्वान बने। ये तीन सौ शिष्यों के अध्यापक थे, पर मन में एक सन्देह था—परलोक है या नहीं? अनेक प्रयत्न करने पर भी यह सन्देह नहीं मिट रहा था। इसे मिटाया भगवान् महावीर ने | . ये भी गौतम स्वामी के साथ सौमिल' के यहाँ अपापानगरी में यज्ञार्थ आये हुए थे। वहाँ से प्रभु के पास गये। अपनी शंका को मिटाकर प्रभु के पास अपने तीन सौ शिष्यों सहित संयमी बने । उस समय इनकी आयु सैंतीस वर्ष की थी। भगवान् महाबीर के दसवें गणधर कहलाए। दस वर्ष छद्मस्थ रहे।
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy