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________________ जैन कथा कोष २५१ बंकचूल ने पंच परमेष्ठी का जाप करते हुए समाधिमरण प्राप्त किया । श्रावक जिनदास जब लौटकर अपने ग्राम जा रहे था तब भी उसे वही दोनों स्त्रियाँ मार्ग में मिलीं। पूछने पर देवियों ने बताया- आपने बंकचूल के भावों इतनी विशुद्धि कर दी कि वे बारहवें स्वर्ग में उत्पन्न हुए हैं, हमारे स्वामी नहीं बन सके हैं I धर्म के प्रभाव को जानकर जिनदास बहुत हर्षित हुए। धर्म का प्रभाव ही ऐसा होता है I — विविध तीर्थकल्प (ढींपुरी तीर्थकल्प ४ ) १४४. ब्राह्मी-सुन्दरी भगवान् 'आदिनाथ' के सुमंगला और सुनंदा नाम की दो रानियाँ थीं। 'सुमंगला' ने एक युगल को जन्म दिया जिसका नाम था 'भरत' और 'ब्राह्मी' तथा 'सुनन्दा' ने जिस युगल को जन्म दिया उसका नाम था 'बाहुबली' और 'सुन्दरी' | 'ब्राह्मी' और 'सुन्दरी' जब ज्ञानार्जन के योग्य बनीं तब भगवान् 'आदिनाथ' ने 'ब्राह्मी' को अठारह लिपि कला तथा 'सुन्दरी' को गणित-कला का ज्ञान कराया । भगवान् 'आदिनाथ' ने प्रव्रजित होकर जब केवलज्ञान प्राप्त कर लिया तब धर्मदेशना दी। उस समय बारह जाति की परिषद् सुनने को उत्सुक बनी सम्मुख अवस्थित थी । उस परिषद् में से महाराज 'भरत' के पाँच सौ पुत्र तथा सात सौ पौत्र विरक्त बनकर प्रभु के पास दीक्षित हुए। उसी समय 'ब्राह्मी' महाराज 'भरत' की आज्ञा लेकर साध्वी बन गई। जब सुन्दरी ने दीक्षा लेनी चाही, तब 'बाहुबली' ने तो आज्ञा दे दी परन्तु 'भरत' ने आज्ञा नहीं दी । भरत ने सोचा'सुन्दरी' जैसी सुन्दरी भी दीक्षा ले लेगी तो मैं अपने स्त्री- रत्न का पद किसे दूँगा? यह तो मेरी स्त्री - रत्न है, ऐसी सर्वगुणसम्पन्ना स्त्री है। सुन्दरी को जब संयम लेने की आज्ञा न मिलने का कारण पता लगा तो मन-ही-मन अपने रूप को धिक्कारती हुई सोचने लगी- मेरा यह रूप ही मेरी दीक्षा में बाधक बना है। बस, इसे ही नष्ट कर देना चाहिए। चोर को नहीं, चोर की माँ को मारना ही ठीक रहेगा। यही सोचकर तप के द्वारा शरीर को क्षीण करने लगी । साठ हजार वर्ष तक आयंबिल तप किया। शरीर हड्डियों का ढाँचा मात्र ही रह गया ।
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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