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________________ जैन कथा कोष २३५ बात सच-सच बता दी और फिर स्वयं उपवन में उदास जाकर बैठ गया। इतने में नारद मुनि वहाँ आ धमके और उसका पौरुष जगाने हेतु कहा'तेरे जैसे पुत्र के होते हुए भी भानु के विवाह में तेरी माँ रुक्मिणी' का मुण्डन होने वाला है।' यह कहकर सारी बात खोलकर बता दी। उसी समय प्रद्युम्न नारद मुनि के साथ 'द्वारिका' की ओर चल पड़ा। वहाँ विद्याबल से अनेक प्रकार के चमत्कार दिखाए। 'भानुक' के बुरे हाल किए। 'सत्यभामा' को सुन्दर बनाने का प्रलोभन देकर उसका मुण्डन कर दिया। बलभद्र को भी कुश्ती में परास्त किया। यहाँ तक कि श्रीकृष्ण को भी युद्ध के बहाने दो-दो हाथ दिखाए। श्रीकृष्ण को यह लगने लगा कि यह शीघ्र ही मेरा राज्य अवश्य छीन लेगा। तभी नारदजी ने आकर सारे रहस्य से पर्दा उठा दिया। पिता-पुत्र दोनों प्रेम से मिले। सर्वत्र हर्ष छा गया। 'रुक्मिणी के तो आनन्द का ठिकाना ही क्या था? प्रसंगवश श्रीकृष्ण को भी यों कहना पड़ा—'रुक्मिणी, तेरा पुत्र तो मुझसे भी बढ़-चढ़कर निकला।' श्रीकृष्ण ने अनेक राजकन्याओं के साथ उसका विवाह किया। श्रीकृष्ण के सभी पुत्रों में यह प्रमुख कहलाया। अन्त में द्वारिका का नाश सुनकर अपने पुत्र अनिरुद्धकुमार आदि समस्त परिवार को छोड़कर संयम ले लिया। नेमिनाथ प्रभु के निर्देशन में रहकर सकल कर्मों का नाश करके केवलज्ञान प्राप्त किया और मोक्ष प्राप्त गया। —आवश्यक मलयगिरि वृत्ति –त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र, पर्व ८ -वसुदेव हिण्डी (पीठिका) १३६. प्रदेशी राजा 'श्वेताम्बिका' नगरी का महाराजा 'प्रदेशी' बहुत ही क्रूर प्रकृति का था। उसकी रानी का नाम 'सूरिकान्ता' और पुत्र का नाम 'सूर्यक्रान्त' था। राजा 'प्रदेशी' की नास्तिक प्रकृति और रक्त से सने हुए हाथों को देखकर प्रजा का मानस सदा आतंकित रहता था। मनुष्य को मौत के घाट उतारना, वह तृण तोड़ने से अधिक नहीं गिनता था। जनता का सद्भाग्य इतना ही था कि शासक जहाँ इतना क्रूर और निर्दयी था, उसका महामात्य उसका बड़ा भाई 'चित्त' उतना ही सौम्य, दयालु और व्यवहारकुशल था। राजा घोड़ों का बड़ा शौकीन था। कुणालदेश की राजधानी 'श्रावस्ती' थी। वहाँ के महाराज 'जितशत्रु' से
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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