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________________ २३६ जैन कथा कोष 'प्रदेशी' की प्रगाढ़ मैत्री थी। राजा ने अपने मन्त्री 'चित्त' को 'जितशत्रु' के लिए कुछ उपहार देकर श्रावस्ती नगरी भेजा। वहाँ 'चित्त' को भगवान् 'पार्श्वनाथ' की परम्परा के संवाहक केशी स्वामी के साथ पाँच सौ साधुओं के साथ दर्शन हुए। केशी स्वामी चार ज्ञान और चौदह पूर्वो के ज्ञाता, परम तपस्वी थे। उन्हीं श्रमण-श्रेष्ठ से चित्त ने श्रावक-धर्म स्वीकार किया और साथ ही यथासमय 'श्वेताम्बिका' नगरी में पधारने का अनुरोध किया। केशी स्वामी ने विस्मित भाव से कहा चित्त ! हरे-भरे फल-फूलों से लदे-सजे उपवन में यदि कोई शिकारी धनुष साधे बैठा हो तो क्या कोई पक्षी वहाँ फल खाने जाना चाहेगा? तुम्हारी और वहाँ की प्रजा की भावना यद्यपि बहुत ही प्रशस्त है, पर तुम्हारे महाराज की जो मन:स्थिति है वह तो.....' विनम्र होकर मंत्री चित्त ने कहा "आप पतितपावन हैं। आपका क्षणिक सम्पर्क भी अधर्मी पापात्मा को धर्मनिष्ठ बना देने में सक्षम है, ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है। भगवन् ! आपका तपःप्रभाव शूल को भी फूल बना सकता है, तब आप राजा की चिन्ता क्यों करते हैं? अनेकानेक श्रद्धालुगण वहाँ हैं। उन पर कृपा करिये। आपके पावन स्पर्श से वहाँ भी धर्म की प्रभावना होगी।" केशी स्वामी ने कहा-'जैसा द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव होगा, देखा जायेगा।' मन्त्री चित्त 'श्रावस्ती' से अपने नगर लौट आया। 'मृगवन' के रखवालों को सावधान करते हुए कहा- यदि जैन मुनि 'केशी' का यहाँ शुभागमन हो तो अपने यहाँ ठहराने की सारी व्यवस्था करना तथा मुझे आकर शीघ्र कहना। विहार करते-करते केशी स्वामी वहाँ पधार गए। मन्त्री ने अपना भाग्य सराहा। स्वयं गुरु के दर्शन किये और प्रार्थना की—'गुरुदेव ! आप महाराज को भी उपदेश दें।' __ केशी स्वामी ने कहा—'चित्त ! धर्म की प्राप्ति चार प्रकार के पुरुषों को होती है—(१) वन में ठहरे हुए साधुओं से सम्पर्क करने वाले व्यक्ति को, (२) उपाश्रय में ठहरे हुए साधुओं से सम्पर्क करने वाले व्यक्ति को, (३) भिक्षार्थ आए मुनि को आहार-पानी देने वाले व्यक्ति को और (४) जहाँ कहीं भी मुनि मिलें, वहाँ सम्पर्क करने वाले व्यक्ति को। लेकिन तुम्हारे राजा में इन चारों बातों में से एक भी नहीं है, तब उसे कैसे प्रतिबुद्ध किया जा सकता है? चित्त ने कहा—'महाराज. को तो मैं यहाँ तक ले आऊँगा।'
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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