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________________ २३४ जैन कथा कोष और बताया-'प्रभु ने कहा है तुम लोग घबराओ मत। प्रद्युम्न जीवित है। उसका पूर्वजन्म का वैरी 'धूमकेतु' देव यहाँ रुक्मिणी का वेश बनाकर आया था और कुमार को ले गया। वह उसे पर्वत पर फेंककर चला गया। वहाँ से मेघसंवर नामक विद्याधर अपने यहाँ ले गया। उसकी पत्नी कनकमाला की गोद में वह सुखपूर्वक बढ़ रहा है। सोलह वर्ष बाद तुम्हें सकुशल मिल जाएगा। _ 'रुक्मिणी' ने अपने आँसू पोंछते हुए पूछा-'मुनिवर ! मैंने पूर्वजन्म में ऐ । कौन-सा पाप किया था जिसके परिणामस्वरूप मुझे पुत्र-वियोग सहना पड़ा, इसका प्रभु ने क्या कारण बतलाया।' ___नारद ऋषि मुस्कराकर बोले—मैं भगवान् सीमंधर स्वामी से सारी बातें पूछकर आया हूँ। इसका कारण बताते हुए प्रभु ने कहा—देवी ! तू पूर्वजन्म में एक बगीचे में गई थी। वहाँ अपने कुंकुम से सने हाथों से एक स्थान पर पडे मोरनी के अण्डे को अपने हाथ में उठा लिया था। वापस वहाँ रख तो दिया पर कुंकुम का रंग उस अण्डे पर लग जाने से मयूरी उस पर आकर नहीं बैठी। दूर डाली पर बैठकर अपने अण्डे की चिन्ता में सोलह घड़ी तक विलाप करती रही। संयोगवश सोलह घड़ी (एक घड़ी-२४ मिनट) बाद वर्षा होने के कारण अण्डे पर से वह रंग उतर गया, तब मयूरी उस पर आकर बैठी। बस, यह सोलह घड़ी का वियोग ही तुम्हारे लिए सोलह वर्षों का वियोग होकर उदय में आया है। लेकिन जिस तरह मयूरी का मिलन अण्डे से हुआ, उसी तरह तुम्हारा मिलन भी तुम्हारे पुत्र से अवश्य होगा। अत: शोक मत करो और धर्मध्यान में अपना मन लगाओ। यों कहकर नारद मुनि वहाँ से अन्यत्र चले गये। उधर प्रद्युम्न सोलह वर्ष का युवा हो गया। वह अनेक कलाविद्याओं में पारंगत हुआ। सोलह गुफाओं पर वहाँ उसने अपना अधिकार जमाया। 'रति' नाम की एक विद्याधर की पुत्री के साथ विवाह भी हुआ। सानन्द वहाँ वह रह रहा था, पर एक दिन प्रद्युम्न का रूप-सौन्दर्य देखकर उसकी माता 'कनकमाला' ही भान भूल बैठी। कामविह्वल होकर वह उससे भोग-प्रार्थना करने लगी। 'प्रद्युम्न' अवाक् रह गया। रोकते हुए 'कनकमाला' से कहा'माँ ! अपने पुत्र के प्रति यह दुर्भावना क्यों? मुझसे ऐसी पापपूर्ण इच्छा की पूर्ति की आशा स्वप्न में भी मत रखना।' कनकमाला ने इसे अपना अपमान समझा और त्रिया-चरित्र फैलाकर उसे फँसाना चाहा। 'मेघसंवर' ने भी 'कनकमाला' की बात को मानकर प्रद्युम्न की भर्त्सना की। 'प्रद्युम्न' ने सारी
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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