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________________ जैन कथा कोष २२५ सौ वर्ष की अवस्था में सावन सुदी अष्टमी को प्रभु ने निर्वाण प्राप्त किया । भगवान् पार्श्वनाथ के माता-पिता तथा महारानी प्रभावती भी दीक्षित हुए । ये सभी कर्म क्षय करके मोक्ष में विराजमान हुए । धर्म-परिवार गणधर केवलज्ञानी साधु. केवलज्ञानी साध्वी मनः पर्यवज्ञानी अवधिज्ञानी पूर्वधर १० बादलब्धिधारी १००० २००० ७५० १४०० ३५० वैक्रिपलब्धिधारी साधु साध्वी ६०० १०१० १६,००० ३८,००० श्रावक १,६४,००० श्राविका ३,३६,००० - त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र, ६ / ३ १३०. पुण्डरीक - कंडरीक' पूर्वमहाविदेहक्षेत्र में एक विशाल नगरी थी, जिसका नाम 'पुंडरीकिणी' था । वहाँ के महाराज का नाम 'महापद्म' तथा महारानी का नाम पद्मावती था । पद्मावती के दो पुत्र थे- 'पुंडरीक' तथा 'कंडरीक' | एक बार 'धर्मघोष' मुनि वहाँ पधारे। नगर के नलिनीवन उद्यान में विराजे । राजा महापद्म दल-बल सहित वंदन करने गया। मुनि की वैराग्यगर्भित वाणी सुनकर राजा का वैराग्य जगा वह संयम लेने को तैयार हुआ । अपने ज्येष्ठ पुत्र 'पुंडरीक' को राज्य पद तथा छोटे पुत्र 'कंडरीक' को युवराज पद देकर राजा संयमी बन गया । कुछ समय बाद ' धर्मघोष' मुनि पुनः उसी नगर में आये । इस बार महाराज 'पुंडरीक' ने श्रावकधर्म स्वीकार किया। युवराज 'कंडरीक' अपने भाई की आज्ञा लेकर संयमी बन गया । साधना का पथ वीरों का है, क्योंकि वहाँ साधक को अनेक कष्टों का सामना करना पड़ता है। मुनि कुंडरीक भी पूर्ण विरक्त होकर साधना के पथ पर बढ़े। परन्तु अरस - विरस आहार से मुनि की कोमल काया में दाह ज्वर १. मूल पाठ में नाम कंडरीक है, लेकिन प्रसिद्ध नाम कुंडरीक है। इसलिए मूल पाठ के अनुसार यहाँ 'कंडरीक' नाम रखा गया है।
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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