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________________ जैन कथा कोष ५ 'सोमिल' के यज्ञ में गये थे। 'पुण्य और पाप' के सम्बन्ध में अपनी गुप्त शंका का समाधान भगवान् महावीर से पाकर अपने ३०० शिष्यों के साथ इन्होंने संयम स्वीकार किया। इन्होंने ४७ वर्ष की आयु में दीक्षा ली तथा ५६ वर्ष की आयु में केवलज्ञान प्राप्त कर ७२ वर्ष की आयु में मोक्ष प्राप्त किया। ६. अजितनाथ भगवान् सारिणी जन्म-नगर अयोध्या पिता जितशत्रु केवलज्ञान-तिथि पौष शुक्ला ११ माता विजया चारित्र पर्याय १ पूर्वांग कम १ जन्मतिथि माघ शुक्ला ८ लाख पूर्व कुमार अवस्था १८ लाख पूर्व कुल आयु ७२ लाख पूर्व राज्य-काल ५३ लाख पूर्व, १ पूर्वांग निर्वाण-तिथि चैत्र शुक्ला ५ दीक्षा-तिथि माघ शुक्ला ६ चिन्ह हाथी' अजितनाथ भगवान् वर्तमान चौबीसी के दूसरे तीर्थंकर हैं। ये विनीता नगरी के महाराज 'जितशत्रु' के पुत्र थे। आप महारानी 'विजया देवी' के गर्भ में विजय नामक दूसरे अनुत्तर विमान से च्यवकर वैशाख सुदी १३ को आये। माता ने चौदह स्वप्न देखे । माघ सुदी ८ को प्रभु का जन्म हुआ। जब प्रभु गर्भ में थे, तब सारि-पासा के खेल में महाराज से महारानी पराजित नहीं हो सकी। महराज हैरान रहे। महाराज ने महारानी के अजित रहने का कारण गर्भस्थ शिशु का प्रभाव माना, अतः पुत्र का नाम भी 'अजित' रख दिया। अजितनाथ १८ लाख पूर्व तक कुमार पद पर रहे, ५३ लाख पूर्व और एक पूर्वांग के समय तक राज्य किया। इसके उपरान्त अपने चाचा सुमित्रविजय के पुत्र 'सगर' को राज्य देकर मुनित्व स्वीकार किया। सगर दूसरा चक्रवर्ती बना । १. तीर्थंकरों के चिह्न के बारे में आचार्यों के भिन्न मत हैं। कई तीर्थंकरों के चरण-कमलों में चिह्न मानते हैं और कई वक्षस्थल में। २. चौरासी लाख को चौरासी लाख से गुणन करने पर जो संख्या आती है, उसे पूर्व __कहते हैं, अर्थात् ७०५६०००००००००० वर्ष को पूर्व कहते हैं। ३. चौरासी लाख वर्ष को एक पूर्वांग कहते हैं।
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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