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६ जैन कथा कोष अजितनाथ प्रभु ने १२ वर्ष छद्मस्थ रहकर तपश्चरण किया और फिर केवलज्ञान प्राप्त किया। ___ आपकी दीक्षा पर्याय १ पूर्वांग कम एक लाख पूर्व की रही। इस प्रकार आपकी संपूर्ण आयु ७२ लाख पूर्व की थी। आयु का अन्तिम समय जानकर १ हजार साधुओं के साथ एक महीने के अनशन में चैत्र सुदी ५ को मोक्ष पधारे । स्मरण रहे आपके शासनकाल में सभी बातें उत्कृष्ट थीं।
धर्म-परिवार गणधर ६५ मनःपर्यवज्ञानी
१२,५०० केवली साधु २२,००० अवधिज्ञानी
६,४०० केवली साध्वी ४४,००० पूर्वधर
३,२७० वादलब्धिधारी १२,४०० साध्वी
३,३०,००० वैक्रियलब्धिधारी २०,४०० श्रावक
२,६८,००० साधु १,००,००० श्राविका
५,४५,००० -त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र, पर्व २
७. अजित सेन 'भद्दिलपुर' के 'नाग' गाथापति की पत्नी का नाम 'सुलसा' था। सुलसा को भी अन्य स्त्रियों की भाँति पुत्र-प्राप्ति की सहज अभिलाषा थी। एक नैमित्तिक ने उसे बताया कि तेरे मृत सन्तान होगी। इसलिए उसने हरिणगमेषी देव की आराधना की। आराधना से प्रसन्न होकर हरिणगमेषी देव उसका संकट मिटाने को तत्पर हो गया। उसने अवधिज्ञान से विचार करके जान लिया कि यद्यपि कंस ने देवकी के सभी पुत्रों को मारने का संकल्प कर लिया है, लेकिन उसके छहों पुत्र पूर्ण आयुष्य वाले हैं। अतः हरिणगमेषी देव ने देवकी के छः पुत्रो का हरण कर 'सुलसा' के यहाँ रखा तथा सुलसा के मृत पुत्रों को देवकी के यहाँ रख दिया। देवकी के छः पुत्र चरम शरीरी होने से कंस के हाथ मरने से बच गये। वे सुलसा के यहाँ पलने लगे। बड़े होने पर उनकी शादी कर दी गई। सारे वैभव को ठुकराकर वे छहों नेमिनाथ प्रभु के पास दीक्षित हुए। उग्रतम तप:साधना द्वारा सभी कर्मों का नाश किया। उन छहों के नाम हैं१. अजितसेन, २. अनिकसेन, ३. अनन्तसेन आदि । छ: भाइयों में अजितसैन