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४ जैन कथा कोष
धमकी दी कि 'मैं तुझे तथा तेरे पति दोनों को मार डालूँगा ।'
उस स्त्री ने घबराकर कहा - 'मैं ही अपने पति को मार दूँगी, पर तुम मुझे मत मारना । '
यह सुनकर हमारा छोटा भाई आश्वस्त हो गया और देवकुल के अन्दर चला आया। वह हाथ के दीपक को ढक भी नहीं पाया था कि वह युवक आ गया। उसने अपनी पत्नी से पूछा भी कि 'देवकुल में प्रकाश कैसा है ? ' तो उसने बहाना बना दिया कि आपके हाथ की अग्नि की परछाई है।
फिर वह युवक अपनी तलवार अपनी पत्नी के हाथ में देकर आग सुलगाने लगा। पत्नी ने उसे मारने के लिए तलवार उठाई। इतने में ही हमारे छोटे भाई का हृदय द्रवित हो गया कि 'स्त्री का हृदय कितना क्रूर होता है कि जो पति उसके शव पर बैठा आधी रात तक रोता रहा, उसी को वह किस निर्दयता से मारने को तैयार है। यह सोचकर उसने उस स्त्री के तलवार वाले ने हाथ पर प्रहार किया । तलवार उसके हाथ से छूटकर गिर गई। उस युवक अपनी पत्नी से फिर पूछा- 'क्या हुआ ?' उसने फिर बहाना बना दिया'घबराहट में तलवार हाथ से छूट गई। '
- वसुदेव हिंडी पीठिका - धम्मिल हिंडी
४. अचल बलदेव
'अचल' पोदनपुर के महाराज 'प्रजापति' के पुत्र तथा माता 'भद्रा' के आत्मज थे। ये ग्यारहवें तीर्थंकर श्री श्रेयांसनाथ के समय में पहले बलदेव बने । भगवान् महावीर का जीव पूर्वजन्म में त्रिपृष्ठ नाम के वासुदेव के रूप में इनका छोटा भाई था। इनकी संपूर्ण आयु ८५ लाख वर्ष की थी। जीवन के अन्तिम समय में त्रिपृष्ठ की मृत्यु के बाद इन्होंने संयम लिया और कैवल्य प्राप्त कर मुक्त हुए /
- त्रिशष्टि शलाकापुरुष चरित्र, पर्व ४, सर्ग १
५. अचलभ्राता गणधर
'अचलभ्राता' भगवान् महावीर के नौवें गणधर थे। ये 'कौशांबी' नगरी के निवासी 'वसु' ब्राह्मण के पुत्र थे। इनकी माता का नाम 'नन्दा' था । ये भी
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