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१६८ जैन कथा कोष तो कायर है, उसको वैराग्य चढ़ा ही नहीं है। यदि वैराग्य चढ़ता तो एक-एक छोड़ने का यह क्या ढोंग?''
सुभद्रा ने कहा—'मेरा भाई तो कायर है। वह मेरी एक-एक भाभी को छोड़ता है और आप आठ-आठ रखते हैं तो यह क्या बहादुरी है? बातें बनाने में तो आप पूरे माहिर हैं। कहना जितना सरल होता है, करना उतना ही कठिन ।' _ 'सुभद्रा' का ताना सुनकर धन्य ने कहा—'आज से तुम सब मेरी बहन हो, मैं तुम्हारा भाई हूँ।'
यों कहकर 'धनजी' शालिभद्र के पास आये। दोनों ही भगवान् महावीर के पास संयमी बने । उत्कट तपः-साधना करने लगे। अपनी साधना के बल पर धनजी ने केवलज्ञान प्राप्त किया। एक मास के अनशन के पश्चात् मोक्ष पहुँचे। 'सुभद्रा' आदि आठों पलियों ने भी धनजी के मार्ग का अनुसरण करके संयम का पथ अपनाया और मोक्ष प्राप्त किया।
-स्थानांगवृत्ति, १० -त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र
११२. धर्मनाथ भगवान्
सारिणी जन्म-स्थान रत्नपुर दीक्षा तिथि
___माघ शुक्ला १३ पिता
भानु केवलज्ञान तिथि पौष शुक्ला १५ माता
सुव्रता चारित्र पर्याय २।। लाख वर्ष जन्मतिथि माघ शुक्ला ३ निर्वाण तिथि ज्येष्ठ शुक्ला ५ कुमार अवस्था २।। लाख वर्ष कुल आयुष्य १० लाख वर्ष राज्यकाल ५ लाख वर्ष चिह्न
वज्र 'धर्मनाथ' रत्नपुर नगर के महाराज 'भानु' की महारानी 'सुव्रता' के उदर में विजयन्त नामक दूसरे अनुत्तर विमान से च्यवकर आये। माता ने चौदह स्वप्न देखे। प्रभु के गर्भ में आते ही माता की धार्मिक भावना अधिक बलवती बनी। माघ शुक्ला तीज को भगवान् का जन्म हुआ। माता की धर्म की भावना के कारण इनका नाम धर्मनाथ रखा गया। यौवन वय प्राप्त होने पर अनेक राजकन्याओं के साथ इनका पाणिग्रहण हुआ। वर्षीदान देकर माघ सुदी