________________
जैन कथा कोष १६७ तुम्हारी आँख दे देंगे, क्योंकि हमारे यहाँ तो धन्धा ही आँखें गिरवी रखने का है। ऐसे कैसे पता लगेगा कि तुम्हारी आँख कौन-सी है? काना सकपका गया। उसने अपना अपराध स्वीकार कर लिया। गोभद्र का सम्मान बचा, धन बचा
और सारा संकट टल गया। सेठ ने प्रसन्न होकर अपनी पुत्री 'सुभद्रा' का विवाह 'धन्यकुमार' के साथ कर दिया। तीनों पत्नियों के साथ 'धन्यकुमार' सानन्द रहने लगा।
उधर उज्जियनी-नरेश चण्डप्रद्योत ने उन तीनों भाईयों को इसलिए वहाँ से निकाल दिया कि इन सबके कारण ही मेरा कुशल महामन्त्री यहाँ से गया है। दीन दशा के मारै वे सब घूमते-फिरते 'राजगृही' में आ पहुँचे। 'धन्यकुमार' ने राजसी ठाट-बाट से उन सबको अपने पास रख लिया। भला जब दुर्जन अपनी दुर्जनता नहीं छोड़े तो सज्जन अपनी सज्जनता कैसे छोड़े? यहाँ भी उन सबके कारण ही 'धन्यकुमार' को 'राजगृही' का परित्याग करना पड़ा। वहाँ से चलकर वह 'कौशाम्बी' नगरी में आया। यहाँ महाराज 'शतनीक' के यहाँ रत्नों की सफल परीक्षा करके राजसी सम्मान पाया। राजा ने अपनी पुत्री 'सौभाग्य मंजरी' का विवाह 'धन्यकुमार' के साथ कर दिया और पाँच सौ गांवों की जागीर दी। 'धनपुर' नगर बसाकर 'धन्यकुमार' वहाँ रहने लगा। पीछे से वह सारा परिवार भी वहाँ मजदूरी करने आ पहुंचा। 'धनपुर' में तालाब की खुदाई हो रही थी। वहाँ वह सारा परिवार खुदाई कार्य करने लगा। धन्यकुमार' अभी तक गुप्त था। 'सुभद्रा' छाछ लेने के लिए इसके यहाँ गयी। 'सुभद्रा' को 'धन्यकुमार' ने अपने यहाँ रख लिया। पीछे से सारा परिवार एक-एक करके वहाँ पहुँचा। जब बात का भेद खुला तब चारों तरफ उल्लास छाना ही था। पाँच सौ गाँवों की वह जागीर अपने भाईयों को सौंपकर 'धन्यकुमार' राजगृही की ओर चल पड़ा। रास्ते में 'लक्ष्मीपुर' नगर में चार अन्य कन्याओं के साथ विवाह किया और फिर राजगृही आ पहुंचा। यों आठ पलियों के साथ सानन्द 'धन्यकुमार' रहने लगा।
एक दिन 'धन्यकुमार' स्नान कर रहे थे। आठों ही पलियाँ स्नान करा रही थीं। 'सुभद्रा' की आँख से उस समय आँसू की एक बूंद धनजी' के शरीर पर पड़ी। 'धन्यकुमार' ने असमय में यों रोने का कारण पूछा। तब 'सुभद्रा' ने कहा—'मेरा भाई 'शालिभद्र' एक-एक पत्नी को छोड़ रहा है। वह साधु बनेगा, अतः मेरा परिवार तो सूना हो जाएगा।''धन्यकुमार' ने कहा—'तेरा भाई