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________________ जैन कथा कोष १६५ देशना सुनी । अपनी जिज्ञासा रखते हुए पूछा-भगवन् ! इन्द्रभूति आदि आपके चौदह हजार साधुओं में कौन साधु दुष्कर साधना करने वाला है? उत्कृष्ट क्रियाकारक कौन है? ___भगवान् महावीर ने कहा-'श्रेणिक ! 'धन्ना' अनगार उत्कृष्ट, कठोर और दुर्धर तप करने वाला है।' यों कहकर 'धन्ना' की सारी तपस्या का वर्णन किया। सुनने वाले सारे रोमांचित हो उठे। श्रेणिक ने 'धन्ना' अनगार के दर्शन किए। श्रेणिक' ने भगवान् की कही हुई बात बताकर मुक्त कंठ से स्तुति करते हुए अपने भाग्य की सराहना की। धन्ना अनगार अपने शरीर को दुर्बल समझकर प्रभु से आज्ञा लेकर विपुलगिरि पर्वत पर गये। अनशन स्वीकार किया। एक मास का अनशन आया। केवल नौ महीने की संयम-साधना में तपस्या के द्वारा सर्वार्थसिद्ध विमान में पैदा हुए। वहाँ से महाविदेह में उत्पन्न होकर मोक्ष प्राप्त करेंगे। -अनुत्तरोपपात्तिक सूत्र १११. धन्यकुमार (धनजी) 'प्रतिष्ठानपुर' नगर के निवासी धनसार' सेठ के चार पुत्र थे-धनदत्त, धनदेव, धनचन्द्र और धन्यकुमार। यह चौथा लड़का धन्यकुमार धनजी के नाम से अधिक विख्यात हुआ। यह सौभाग्यशाली, प्रतिभावान् तथा सूझ-बूझ का धनी था। बड़े तीन भाई लाला, बाला और काला इन उपनामों से अधिक विख्यात हुए। तीनों ईर्ष्यालु, झगड़ालु और पापात्मा थे। इन तीनों का जब जन्म हुआ तब सेठ 'धनसार' के घर से धन नष्ट होने लगा। घर में दारिद्रय का वास होने लगा। पर जब 'धनजी' का जन्म हुआ और उनकी नाल गाड़ने के लिए जमीन में गड्ढा खोदा गया, तब जमीन में मोहरों का चरु (घड़ा) निकला। व्यापार में वृद्धि होने लगी। इसलिए इनका नाम धन्यकुमार रखा। पिता का प्रेम भी इस छोटे पुत्र पर सौभागी मानकर अधिक रहता। तीनों बड़े भाई छोटे भाई से ईर्ष्या रखने लगे। पिता ने उन सबको कई बार समझाने का प्रयत्न भी किया, परन्तु सब बेकार गया। भाग्य-परीक्षा के लिए इन तीनों को कई बार धन देकर व्यापार करने के लिए भेजा गया। परन्तु ये सारी पूंजी को ही नष्ट करके आये। धन्यकुमार को जब-जब मौका मिला, तब-तब उसने दुगुना-तिगुना लाभ कमाया। इससे इसका सम्मान और भी बढ़ा। साथ ही तीनों बड़े भाईयों की
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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