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१६४ जैन कथा काष
स्वामी पद्नाभ के पास नारदजी पहुँचे। द्रौपदी का चित्र बनाकर उसे कामान्ध बना दिया। पद्मनाभ ने देवता के सहयोग से द्रौपदी को अपने पास मँगवा लिया। जब द्रौपदी की आँख खुली तब युधिष्ठिर को अपने पास न देखकर विलाप करने लगी । 'पद्मनाभ' ने अपना परिचय दिया । उसे वहाँ से मँगवाने का उद्देश्य बताया। सान्त्वना भी दी । परन्तु वह उसे अपने चंगुल में फँसाने में सफल नहीं हुआ। नारद ने ही श्रीकृष्ण को द्रौपदी का पता बताया। श्रीकृष्ण पाँचों पाण्डवों को लेकर अमरकंका नगरी पहुँचे। पद्मनाभ को परास्त करके उसकी दुर्दशा की और द्रौपदी को वापस ले आए।
द्रौपदी के एक पुत्र हुआ जिसका नाम पाण्डुसेन रखा गया । पाण्डुसेन को राज्यभार सौंपकर पाँचों पाण्डवों और द्रौपदी ने धर्मघोष मुनि के पास दीक्षा ली । द्रौपदी ने ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। एक मास का अनशन करके पाँचवें स्वर्ग में गई। वहाँ से महाविदेह में उत्पन्न होकर मोक्ष में जाएगी।
-ज्ञातासूत्र, अध्ययन १६ - त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र, पर्व
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११०. धन्ना अनगार
'धन्ना' अनगार 'काकंदी' नगरी में रहने वाली 'भद्र' सेठानी के पुत्र थे । युवावस्था में कुमार का बत्तीस रूपवान कन्याओं के साथ विवाह कर दिया गया। सभी प्रकार की सुख-सुविधाओं में जीवन यापन हो रहा था ।
एक बार भगवान् महावीर 'काकंदी' नगरी में पधारे। प्रभु की देशना सुनकर कुमार प्रतिबुद्ध हुए। माँ की आज्ञा लेकर बत्तीस स्त्रियों का त्याग कर प्रभु के पास धन्ना ने दीक्षा ली। मुनि बनने के बाद प्रभु की आज्ञा लेकर बेलेबेले का तप स्वीकार किया। पारणे के दिन आयंबिल करना अर्थात् दिन में एक बार एक धान और पानी लेना । वह भी ऐसा धान, जिसे भूख से बेहाल भिखारी भी न खाए, बचा खुचा फेंकने योग्य आहार । इस अरस-विरस आहार से धन्ना का शरीर पूर्णतः कृश हो गया। अस्थि-पिंजर मात्र रह गया। अब न उठने की और न बैठने की शक्ति शरीर में शेष थी । सारी शक्तियाँ क्षीणप्राय हो गई थीं । बोलने में ही नहीं अपितु बोलने का विचार करने में भी उन्हें कष्ट होता था । केवल जीवनी शक्ति के बल पर ही जी रहे थे।
एक बार मगधेश श्रेणिक भगवान् महावीर के दर्शनार्थ आया । प्रभु की