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________________ जैन कथा कोष १८१ काफी दिनों तक दशरथ राज्य-सुख भोगते रहे । एक बार महामुनि सत्यभूति संघ सहित अयोध्या पधारे। उनके उपदेश से दशरथ को वैराग्य हो गया। उन्होंने राम को राज्य देकर दीक्षा लेने का विचार किया। उनके साथ ही भरत ने भी दीक्षा ग्रहण करने की इच्छा प्रकट कर दी। पति और पुत्र का वियोग एक साथ सहने में असमर्थ होकर कैकेयी ने भरत का, राजतिलक माँगा। लेकिन भरत सिंहासन पर बैठने को तैयार न हुए। इस समस्या को ह न करने के लिए राम ने वन जाने का निर्णय कर लिया। इनके साथ ही सीताजी और लक्ष्मण भी वन को चले गये। . ___भरत-कैकेयी आदि राम को वापस लाने गये, लेकिन राम वापस नहीं लौटे । इतना अवश्य हुआ कि राम की आज्ञा मानकर भरत ने शासन-संचालन करना स्वीकार कर लिया। इस व्यवस्था से संतुष्ट होकर राजा दशरथ ने महामुनि सत्यभूति के पास दीक्षा ग्रहण कर ली और उग्र तप करने लगे। आयु पूर्ण करके उन्होंने सद्गति प्राप्त की। -त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र, पर्व ७ . १०३. दशार्णभद्र दशार्णभद्र राजा दशार्णभद्रपुर देश का अधिपति था। यह भगवान् महावीर का परम भक्त था। उसके यह नियम था कि 'भगवान् महावीर आज अमुक स्थान में सुख-साता से विराजमान हैं—यह संवाद सुनकर ही भोजन करता था। एक बार भगवान् महावीर 'दशार्णभद्रपुर' में पधारे । राजा ने सोचा कि मैं भगवान् के दर्शन करने ऐसे ऐश्वर्य के साथ जाऊँ जैसे ऐश्वर्य से आज तक कोई न गया हो। उसी के अनुरूप साज-सज्जा से राजा दर्शनार्थ गया। अपने वैभव पर मन-ही-मन इतरा रहा था। अवधिज्ञान से सौधर्मेन्द्र ने राजा के भावों का परिज्ञान किया तो वह राजा का मान भंग करने चल पड़ा । इन्द्र ने अपनी वैक्रियलब्धि से एक बहुत बड़ा हाथी बनाया, जिसके पाँच सौ मुँह थे। प्रत्येक मुँह पर आठ-आठ दन्तशूल, प्रत्येक दन्तशूल पर आठ-आठ विशाल बावड़ियाँ बनाईं। प्रत्येक बावडी में लाख पंखुड़ियों वाला कमल का फूल तथा फूल की प्रत्येक पंखुड़ी पर बत्तीस प्रकार के नाटक हो रहे थे। ऐसे हाथी पर सवार होकर इन्द्र महाराज प्रभु के दर्शनार्थ आए।
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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