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१८० जैन कथा कोष
एक मास की अवस्था में ही प्राप्त हो गया। दशरथ का बचपन का नाम क्षीरकंठ भी था ।
युवा होकर दशरथ ने अयोध्या का राज्य बड़ी कुशलता से सँभाला। उनकी प्रशंसा दूर-दूर तक फैल गई। उनका पहला विवाह कुशस्थलपुरनरेश सुकोशल की पुत्री अपराजिता के साथ हुआ । अपराजिता का ही दूसरा नाम कौशल्या था। दूसरा विवाह कमलसंकुलनगर के राजा सुबन्धुतिलक की पुत्री सुमित्रा के साथ हुआ और इसके बाद तीसरा विवाह सुप्रभा नाम की सुन्दरी राजकुमारी के साथ हुआ। राजा दशरथ तीनों रानियों के साथ सुख भोगते हुए शासन संचालन करते रहे ।
एक बार लंकेश्वर रावण ने किसी निमित्तज्ञानी से अपनी मृत्यु के बारे में पूछा तो उसने बताया कि मिथिलापति जनक की पुत्री के कारण तेरी मृत्यु अयोध्यापति दशरथ-पुत्र के हाथों होगी ।
इस पर रावण के भाई विभीषण ने दशरथ को मारने का संकल्प कर लिया । इस संपूर्ण घटना की सूचना नारदजी ने पहले ही राजा दशरथ और राजा जनक को दे दी। मंत्रियों के परामर्श से राजा दशरथ तो अपने महल से निकलकर वन में चले गये और उनकी शय्या पर मंत्रियों ने एक लेप्यमय पुतला बनवाकर लिटा दिया। रात्रि को विभीषण आया और उस पुतले का सिर काटकर उसने समझा कि दशरथ का प्राणान्त हो गया है। वह खुश होता हुआ वापस चला गया। राजा जनक ने भी इसी युक्ति से अपने प्राणों की रक्षा की ।
वन में निकलकर राजा दशरथ उत्तरापथ की ओर चले गये । वहाँ कौतुकमंगलनगर में कैकेयी का स्वयंवर हो रहा था। कैकेयी नगरनरेश राजा शुभमति की पुत्री थी । इसने इनके गले में वरमाला डाल दी । तब हरिवाहन आदि बड़े-बड़े पराक्रमी राजाओं ने इनका विरोध किया । इन्होंने सभी राजाओं को युद्धक्षेत्र में जीत लिया और कैकेयी के साथ वहीं रहने लगे । अन्य रानियों को भी वहीं बुला लिया और सुख से रहने लगे ।
इस प्रकार राजा दशरथ की चार रानियाँ थीं— कौशल्या, सुमित्रा, सुप्रभा और कैकेयी । कौशल्या ने श्रीराम को जन्म दिया, सुमित्रा ने लक्ष्मण को, कैकेयी ने भरत को और सुप्रभा ने शत्रुघ्न को । अतः राजा दशरथ के चार रानियों से उत्पन्न चार पुत्र थे। चारों पुत्रों के युवा होने पर राजा दशरथ अयोध्या लौट आये। इसके बाद राम का सीता के साथ विवाह हो गया ।