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________________ १५४ जैन कथा कोष बारह व्रतधारी श्रावक भी थे। उन्हें अनेक राजाओं के साथ युद्ध में उतरना पड़ा। इनका संकल्प था कि निरपराधी पर ये प्रहार नहीं करते थे तथा एक दिन में एक बार ही एक बाण छोड़ते । इनका निशाना अचूक रहता। कूणिक के साथ किये गये महाभयंकर युद्ध में कालिककुमार आदि दस भाइयों को इन्होंने प्रतिदिन एक बाण छोड़कर दस दिन में समाप्त कर दिया था। इतिहासप्रसिद्ध चेटक-कणिक युद्ध को देवेन्द्रों की सहायता से कणिक ने जीत लिया। वहाँ इन्हें विजित होना पड़ा। फिर भी अपनी नीतिमत्ता से पीछे नहीं हटे। विरक्त होकर इन्होंने समाधिमरण किया और बारहवें स्वर्ग में गये।। ___ महाराजा चेटक के सात पुत्रियाँ थीं, जिनका वैवाहिक सम्बन्ध जैनधर्मावलंबी बड़े.बड़े नरेशों के साथ किया गया था, जो यों है (१) प्रभावती—वीतभयनगर के स्वामी 'उदायन' के साथ। (२) पद्मावती-चम्पापुरपति 'दधिवाहन' के साथ। (३) मृगावती—कौशाम्बीपति 'शतानीक' के साथ। (४) ज्येष्ठा-कुंडनपुर पति नन्दीवर्धन' के साथ । (५) शिवा—उज्जयिनी पति ‘चण्डप्रद्योत' के साथ । (६) सुज्येष्ठा—साध्वी बनी। (७) चेलना-राजगृहीपति 'श्रेणिक' के साथ। -आवश्यक कथा ८३. चेलना 'चेलना' वैशाली के महाराज 'चेटक' की सबसे छोटी पुत्री थी। यह बहुत ही लाड़-प्यार से पली-पुसी एक सुशील कन्या थी। 'चेलना' की बड़ी बहन "सुज्येष्ठा' के रूप पर मुग्ध बने महाराज श्रेणिक' उसके साथ विवाह करना चाहते थे। पर विधर्मी होने से महाराज चेटक ने श्रेणिक के प्रस्ताव को साफ अस्वीकार कर दिया; क्योंकि तब तक राजा श्रेणिक बौद्धधर्मानुयायी थे। 'श्रेणिक' की इस चिन्ता को मिटाने के लिए 'अभयकुमार' ने सारा काज सजाया। स्वयं व्यापारी बनकर वहाँ गया। दासियों के माध्यम से 'सुज्येष्ठा' को राजा श्रेणिक के प्रति आकर्षित किया। सुज्येष्ठा चेलना को लेकर सुरंगद्वार से आने को उतावली हो उठी। जेवरों के डिब्बे के मोह में फंसकर 'सुज्येष्ठा' अपनी आभूषण-मंजूषा को लेने गई और पीछे रह गई। 'चेलना' श्रेणिक के
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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