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________________ जैन कथा कोष १५३ तब देव ने यह सोचकर पैंतरा बदला कि कई मनुष्य सन्तान से भी अधिक मोह अपने शरीर से करते हैं, और कई शरीर से भी अधिक महत्त्व धन को देते हैं। इसीलिए धन ग्यारहवाँ प्राण कहलाता है। इस माध्यम से उसे फुसलाने के लिए देव ने कहा—' ओ महामूर्ख श्रमणोपासक ! तीन सन्तानों की मृत्यु से भी तेरे रोमांच नहीं हुआ, पर अब मैं पसीने से अर्जित तेरे सारे धन को 'आलंभिका' नगरी में चारों ओर फेंकता हूँ। एक फूटी कौड़ी भी तेरे भण्डार में नहीं रहने दूँगा। घर में रोटी के लाले पड़ जायेंगे, दर-दर की खाक छानता फिरेगा, तब तुझे पता चलेगा।' यों कहकर देवता भण्डार की ओर जाने लगा । अब चुल्लुशतक अपने आपको सँभाले नहीं रख सका । कलेजा धक् धक् करने लगा । 'पकड़ो - पकड़ो' कहता हुआ उस देव को पकड़ने उठा । 'चुल्लुशतक' का कोलाहल सुनकर अपने शयनकक्ष से उसकी धर्मपत्नी 'बहुला' दौड़कर आयी और कोलाहल का कारण जानना चाहा। चुल्लुशतक ने सारी आपबीती बताई। तब बहुला ने सांत्वना देते हुए कहा- ऐसा कुछ नहीं हुआ है। तीनों पुत्र आराम से सो रहे हैं। लगता है किसी देव ने आपकी परीक्षा करने के लिए यह सब कुछ किया है। आप अपने संकल्प में दृढ़ नहीं रह सके। खैर, जो हुआ सो हुआ । अब भी आप आलोचना कर धर्मध्यान में तल्लीन बनिये | पत्नी की बातों से 'चुल्लुशतक' आश्वस्त हुआ । अपनी धनासक्ति पर मन-ही-मन ग्लानि हुई । मन के कोने में छिपी दुर्बलता को दूर फेंकने का दृढ़ संकल्प किया । चुल्लुशतक ने श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं का सकुशल पालन किया । बीस वर्ष तक श्रावकधर्म का पालन कर समाधिपूर्वक देह त्याग किया। सौधर्मकल्प में अरुणसिद्ध विमान में पैदा हुआ। वहाँ से महाविदेह में उत्पन्न होकर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त बनेगा ! -उपासकदशा, अध्ययन ५ ८२. चेटक महाराज चेटक वैशाली के एक कुशल शास्ता थे। वैशाली गणतन्त्र में मल्ली, ६ लिच्छवी जाति के १८ राजा थे। उन सबके प्रमुख थे महाराज 'चेटक'। भगवान् महावीर के ये मामा थे। केवल जैनधर्मी ही नहीं, अपितु
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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