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________________ १५२ जैन कथा कोष संकल्प कर लिया। भविष्य में और अधिक दृढ़ रहने की भावना सुस्थिर की। श्रावक प्रतिमाओं का सविधि पालन कर तप के द्वारा शरीर को कृश किया। अन्त में समाधिमरण प्राप्त करके प्रथम स्वर्ग के अरुणप्रभ विमान में दिव्यऋद्धि वाला देव बना । वहाँ से महाविदेह में उत्पन्न होकर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होगा। -उपासकदशा ३ ८१. चुल्लशतक 'चुल्लशतक' आलंभिका नगरी में रहने वाला एक ऋद्धिसम्पन्न गाथापति था। अठारह कोटि सोनैयों का वह स्वामी था। छः कोटि सोनये व्यापार में, छः कोटि सोनैये घरेलू उपकरणों में तथा छः कोटि सोनैये भूमि में संस्थापित थे। दसदस हजार गायों के छः गोकुल भी उसके पास थे। उसकी धर्म-सहायिका धर्मपत्नी का नाम था 'बहुला'। भगवान् महावीर के पास बारह व्रतों को स्वीकार करके वह अपने जीवन को समता और सादगी के साथ बिताने लगा। पौषधशाला में धर्मध्यान में अवस्थित चुल्लशतक की दृढ़ता की परीक्षा करने एक देव आया और बोला-चुल्लशतक ! तूने संकल्प किया है कि मैं अपने शीलव्रत पौषध में सभी उपसर्गों में अविचल रहूँगा, पर मैं तुझे आज निश्चित ही चलित करके छोडूंगा। मेरा कहना मान जा। उठ, अपना काम कर, अन्यथा दुष्परिणाम भोगना पड़ेगा। इस प्रकार कहकर देवता उसके ज्येष्ठ पुत्र को उसके सामने ले गया। उसकी घात करके शरीर के सात टुकड़े किये। उसके खून से कड़ाह भरकर फिर उसमें तेल डाला, उसे उबाला और उस रक्त-मिश्रित तेल में उसके माँस. के शूले बनाये। उन शूलों को 'चुल्लशतक' के शरीर पर मला । उस खौलते हुए तेल से उसके शरीर को सींचा। शरीर में भयंकर ताप होने लगा। पुत्र की चिल्लाहट भी उसे साफ सुनाई पड़ी। महावीभत्स दृश्य सामने है, फिर भी चुल्लशतक तिलमात्र भी विचलित नहीं हुआ। आत्मस्थ बैठा रहा। समताशील बना उस दारुण उपसर्ग को सहता रहा। ___ देव ने दूसरे पुत्र का, तीसरे पुत्र का भी वैसा किया पर चुल्लशतक बहुत ही दृढ़ रहा।
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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