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________________ जैन कथा कोष १५५ साथ चली गई । 'श्रेणिक' ने इसके साथ पाणिग्रहण करके अपनी पटरानी का पद दिया । I रानी ‘चेलना' पतिभक्ता और जैनधर्मानुरक्ता थी । यहाँ आने के बाद उसे पता लगा कि महाराज श्रेणिक बौद्धधर्मावलम्बी हैं। दोनों के जीवन में कुछ ऐसे प्रसंग भी आये जिससे विधर्मिता के कारण परस्पर में तनावपूर्ण स्थिति हो गई पर प्रयत्न दोनों का यही रहा कि जीवन सरस रहे । अनाथी मुनि के सम्पर्क से राजा श्रेणिक जैनधर्मी बना, दृढ़धर्मी बना, भगवान् महावीर का परम भक्त बना । तब चेलना का सिरदर्द सदा-सदा के लिए समाप्त हो गया । एक बार शिशिर ऋतु में भगवान् महावीर राजगृह में पधारे। राजा श्रेणिक अपनी पटरानी चेलना सहित उसके दर्शनार्थ समवसरण में पहुँचे । वापस लौटते समय एक मुनि वहाँ जंगल में वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ खड़े थे । उस कड़ाके की सर्दी में मुनि को ध्यानस्थ खड़े देखकर चेलना ने सोचाकहाँ तो मैं इतने ऊनी वस्त्रों में लिपटी हुई ठिठुर रही हूँ, कहाँ ये महामुनि जो यों अल्प वस्त्रों में भी प्रसन्न खड़े हैं । रानी महलों में आकर सो गई। रात्रि को रजाई के बाहर उसका एक हाथ रह गया। जब कड़ाके की सर्दी में वह हाथ ठिठुर गया तब आँख खुली। उस मुनि की स्मृति हो आई, मुँह से सहसा निकला - 'वह क्या करता होगा?" राजा के कान में ये शब्द पड़े । बस, फिर क्या था ! राजा इस निर्णय पर पहुँचा — हो न हो, चेलना किसी अन्य पुरुष पर आसक्त है। इसका मन उधर दौड़ रहा है। इसीलिए बड़बड़ा रही है । हाय ! मैंने इसे इतना प्यार दिया। फिर भी यह अन्य पुरुष के प्रति आसक्त है। नारी का क्या भरोसा ? क्रोध, रोष और आक्रोश मन-ही-मन बटोरे राजा प्रात:काल महलों के नीचे आया । आव देखा न ताव, अभयकुमार को चेलना का महल जलाने का आदेश दे डाला। स्वयं चलकर भगवान् महावीर के समवसरण में पहुँचा । प्रभु ने राजा की मनोव्यथा को लक्ष्य करते हुए महारानी चेलना की पत रखने के लिए फरमाया-' महाराज चेटक की सातों पुत्रियाँ सच्ची सती हैं । ' • राजा चौंका, चेलना के मुँह से निकले रात वाले शब्द कहकर उनका रहस्य जानना चाहा । प्रभु ने ध्यानस्थ मुनि की सारी घटना सुनाकर राजा का
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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