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________________ जैन कथा कोष १४३ एक बार पल्ली के किसी आदमी ने सुषमा के रूप की प्रशंसा की। चिलातीपुत्र का सोया अनुराग जाग उठा । उसने अपने साथियों से कहा—'धन्ना सेठ के यहाँ चोरी करेंगें। धन-माल तुम्हारा और अकेली सुषमा मेरी।' ___योजना बनी और सब मिलकर धन्ना सेठ के यहाँ पहुँच गये। साथी चोरों ने धन के गट्ठर बाँध लिये और चिलातीपुत्र ने सुषमा को उठा लिया तथा सब-के-सब चल दिये। इतने में सेठ की नींद टूट गई। यह जानकर कि धन के साथ सुषमा को भी चिलातीपुत्र ले गया है, उसके क्रोध का पारावार न रहा। उसने अपने पाँचों पुत्रों को जगाया, कुछ राजकर्मचारी भी साथ लिये और चोरों का पीछा करने लगा। राजकर्मचारियों से उसने कह दिया—'सारा धन तुम्हारा और अकेली सुषमा मेरी।' __इस प्रकार उत्साह में भरकर सभी चोरों का पीछा करने लगे। धीरेधीरे उनके और चोरों के बीच की दूरी कम होने लगी। अन्ततः चोर साफ दिखाई देने लगे। सेठ और आरक्षी दल को देखकर चोर घबरा गये। वे धन के गट्ठर छोड़कर इधर-उधर भाग खड़े हुए। आरक्षियों ने धन की गठरियां उठा लीं। इस स्थिति को देखकर चिलातीपुत्र बहुत निराश हुआ। उसे अपने साथियों पर क्रोध भी बहुत आया, पर वह इस समय कर ही क्या सकता था। सुषमा को कँधे पर लादे भागता ही रहा। इधर राजकर्मचारियों की इच्छा भी पूरी हो चुकी थी। धन उन्हें मिल ही चुका था। अब उन्हें भी चिलातीपुत्र को पकड़ने और सुषमा को उसके चंगुल से मुक्त कराने का कोई उत्साह न रहा। सेठ ने उन्हें बहुत प्रेरणा दी, कर्तव्य की याद दिलाई, पर वे आगे न बढ़े। निराश सेठ अपने पाँचों पुत्रों सहित ही चिलातीपुत्र का पीछा करने लगा। चिलातीपुत्र भागते-भागते थक चुका था। सुषमा का बोझ अब उसे भारी लगने लगा। जब उसने देखा कि सेठ और उसके पुत्र बहुत समीप आ गये हैं और इनकी पकड़ से बचना अत्यन्त कठिन है तो अपना बोझ कम करने के लिए उसने सुषमा का सिर काट दिया, धड़ को वहीं पड़ा छोड़ा और एक हाथ में सुषमा का सिर तथा दूसरे हाथ में नंगी तलवार लिये भाग छूटा। जब सेठ और उसके पुत्रों ने सुषमा का धड़ देखा तो उन्हें घोर दुःख हुआ। उनका उद्देश्य भग्न हो चुका था। जिस सुषमा के लिए उन्होंने इतना
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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