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________________ १४२ जैन कथा कोष एक हजार मुनियों के साथ एक महीने के अनशन में सम्मेदशिखर पर्वत पर मोक्ष प्राप्त किया । चन्द्रप्रभु इस वर्तमान चौबीसी में आठवें तीर्थंकर हैं । धर्म-परिवार गणधर केवली साधु केवली साध्वी मनः पर्यवज्ञानी अवधिज्ञानी . पूर्वधर ६३ 90,000 २०,००० ८००० ८००० २००० बादलब्धिधारी वैक्रिलब्धिधारी साधु साध्वी श्रावक श्राविका ७६०० १४,००० २,५०,००० ३,८०,००० २,५०,००० ४,६१,००० - त्रिशष्टि शलाकापुरुष चरित्र, ३ / ५ ७८. चिलातीपुत्र मगध देश में राजगृह नगर में वैभव - सम्पन्न धन्ना सार्थवाह रहता था । उसकी पुत्री का नाम भद्रा था । उसके पाँच पुत्र थे । उसके चिलाती नाम की एक दासी भी थी । दासी का भी एक पुत्र था, जिसका नाम अपनी माता के नाम पर चिलातीपुत्र पड़ गया था । पाँच पुत्रों के बाद सेठ धन्ना के एक पुत्री हुई, उसका नाम सुषमा रखा गया। सुषमा को खिलाने का काम चिलातीपुत्र को सौंपा गया । चिलातीपुत्र सुषमा को खिलाते-खिलाते कभी-कभी एकान्त में काम-कुचेष्टा भी कर लिया करता था । एक दिन सेठ ने ऐसा करते उसे देख लिया तो उन्होंने उसे डाँट-फटकारकर घर से बाहर निकाल दिया । आवारा घूमता हुआ चिलातीपुत्र नगर से बाहर सिंहपल्ली नामक चोरों की पल्ली में पहुँच गया। चोरपल्ली के स्वामी विजय का पुत्र मर चुका था। अतः उसने चिलातीपुत्र को अपना पुत्र मानकर रख लिया और उसे चौर्यकर्म की शिक्षा देने लगा। कुछ वर्षों में चिलातीपुत्र इस विद्या में कुशल हो गया और विजय के मरने के बाद चोरों का सरदार बन गया। उसके अधीन पाँच सौ चोर थे। वह निस्संकोच होकर चोरी करता । जनता उससे भयभीत रहती। वह दुर्दान्त और क्रूर हो चुका था । लाख प्रयत्न करने पर भी राजकर्मचारी उसे पकड़ न पाये थे। उसका आतंक संपूर्ण राजगृह में व्याप्त हो गया था ।
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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