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________________ जैन कथा कोष १४१ राजा चन्दन उस समय कुसुमपुर नगर में थे तभी आचार्यप्रवर सुस्थित संघ सहित वहाँ पधारे। उनकी देशना से राजा चन्दन और रानी मलया प्रतिबुद्ध हो गये। बड़े पुत्र सायर को कुसुमपुर तथा छोटे पुत्र नीर को चम्पापुर का राज्य देकर दोनों ने दीक्षा ले ली। निरतिचार संयम का पालन करते हुए दोनों ने कालधर्म प्राप्त किया और उत्तम गति पायी । - चन्दन - मलयगिरी रास जन्म-स्थान पिता माता दीक्षा तिथि केवलज्ञान चारित्र पर्याय ७७. चन्द्रप्रभु भगवान सारिणी चद्रानना नगरी (चन्द्रपुरी) महासेन लक्ष्मणा पौष वदी १३ फाल्गुन बदी ७ २४ पूर्वांग कम एक लाख पूर्व जन्म-तिथि कुमार अवथा राज्यकाल चिह्न सम्पूर्ण निर्वाण तिथि पौष वदी १२ २ ।। लाख पूर्व ६ ।। लाख पूर्व २४ पूर्वांग चन्द्रमा १० लाख पूर्व भाद्रपद बदी ७ (सम्मेदशिखर पर) धातकी खण्ड द्वीप के प्राग्विदेह क्षेत्र मंगलावती विजय में रत्नसंचया नाम की नगरी थी। वहाँ पद्म नाम के राजा शासन करते थे। पद्म ने युगन्धर मुनि के पास दीक्षा ग्रहण की और तप करके वैजयन्त नाम के अनुत्तर विमान में देव बने। मुनि पद्म का जीव वैजयन्त नामक दूसरे अनुत्तर विमान से च्यवकर माता लक्ष्मणा के गर्भ में आया था। लक्ष्मणा चन्द्रानना ( चन्द्रपुरी) के राजा महासेन की रानी थी। माता ने चौदह स्वपनों के साथ साथ चन्द्रमा को पीने का स्वप्न देखा था इसलिए पुत्र का नाम दिया—चन्द्रप्रभु। युवावस्था में अनेक राजकन्याओं के साथ इनका विवाह हुआ था । पिता के दिवंगत होने पर लम्बे समय तक शासन का संचालन किया । लोकान्तिक देवों के प्रतिबोध देने के बाद वर्षीदान देकर मुनित्व स्वीकार किया । मात्र तीन महीने ही छद्मस्थ रहे और उसके बाद केवलज्ञान प्राप्त करके तीर्थ की स्थापना की । प्रभु के तीर्थ में ६३ गणधर थे। सबसे बड़े गणधर का नाम था— दत्त |
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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