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________________ जैन कथा कोष ११७ जो पाँच सौ श्रमण हैं, वे साधु नहीं सुभट हैं।' __राजा लोग कान के कच्चे होते ही हैं। उसे भी खंधक मुनि के प्रति शंका हो उठी। उसने स्वयं जाकर उपवन की भूमि खुदवाई तो शस्त्र निकल आये। उन्हें देखते ही राजा दण्डक कुपित हो उठा। 'पालक' को यह काम यों कहकर सौंप दिया कि जैसी तुम्हारी इच्छा हो, वैसा करना। 'पालक' को और क्या चाहिए था? बगीचे में एक बहुत बड़ा कोल्हू लगवाया। एक-एक करके साधुओं को उसमें पीलने लगा। जनता में हाहाकार मच गया, पर कोई क्या करे? उसने चार सौ निन्यानवे साधुओं को उस कोल्हू में पेल दिया। चारों ओर खून के नाले बहने लगे। माँस के लोथडों के ढेर पडे हैं, पक्षीगण मँडरा रहे हैं, पर इस नृशंस को दया कहाँ ! ___महामुनि खंधक सभी सन्तों को समाधिस्थ रहने की बलवती प्रेरणा देते रहे । जब सबसे छोटे शिष्य को पीलने के लिए पालक ने पकड़ा तब खंधक मुनि का धैर्य डोल उठा। विचलित दिल खंधक ने पालक से कहा—'मुझे इस लघु शिष्य का अवसान तो मत दिखा। मुझे भी तो तू पीलना चाहेगा। तेरे लिए पहले-पीछे में क्या फर्क पड़ता है? पहले मुझे पील दे, बाद में इसे पीलना।' यह सुनते ही पालक की बाँछे खिल उठीं । त्यौरियाँ बदलकर बोला--'मुझे पता ही नहीं था कि तुझे इसी का अधिक दुःख है। इसलिए इसे तो तेरी आँखों के सामने अवश्य पीलूंगा । यों कहकर उस लघु साधु को कोल्हू में डाल दिया। खंधक अपने आपको सँभाले नहीं रख सके । कुपित होकर तीखे स्वर में बोले-'देख, मेरे त्याग और तप का यदि कुछ फल है तो मैं तुम्हारे लिए, तुम्हारे देश के लिए, तुम्हारे राजा के लिए नामोनिशान मिटाने वाला बनूँ ।' यों बोलते हुए मुनि को पालक ने पकड़कर कोल्हू में डाल दिया। खंधक मुनि दिवंगत होकर अग्निकुमार देव बने । अवधिज्ञान से जब उन्होंने अपना पूर्वजन्म देखा तब कुपित होना सहज ही था। अग्नि की विकुर्वणा करके सारे नगर को भस्म कर दिया। कुछ ही क्षणों में 'दण्डक' देश 'दण्डकारण्य' बन गया, कोई भी नहीं बचा। केवल पुरंदरयशा, जो खंधक की बहन थी, बची | बचने का एक कारण था | रानी ने खंधक मुनि को पहले एक रत्नकम्बल दिया था। मुनि ने उस कम्बल का रजोहरण बनाया था। मुनि के पीले जाने पर उस खून से सने रजोहरण को कोई पक्षी माँस की बोटी समझकर
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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