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________________ ११६ जैन कथा कोष (स्कंदक) तथा पुत्री का नाम था 'पुरन्दरयशा'। 'पुरन्दरयशा' का विवाह दण्डक देश की राजधानी 'कुंभकटकपुर' के स्वामी दण्डक राजा के साथ किया गया था। दण्डक राजा के मंत्री का नाम था 'पालक' जो महापापी, क्रूरकर्मी, अभव्य तथा जैनधर्म का द्वेषी था। एक बार 'पालक' 'सावत्थी' नगरी में आया। प्रसंगवश 'खंधक कुमार' से धार्मिक चर्चा चल पड़ी। खंधक के तर्क-पुरस्सर विवेचन तथा जैनधर्म के गौरवपूर्ण प्रतिष्ठापन से पालक का खून खौल उठा। 'खंधक' द्वारा प्रस्तुत किये गये अकाट्य तर्कों के सामने पालक को बहुत ही बुरी तरह से मुंह की खानी पड़ी, पर उपाय क्या? मन-ही-मन तिलमिलाता 'कुंभकटकपुर' लौट आया। उसने खंधक के प्रति शत्रुता की गाँठ बाँध ली। ___ भगवान श्री मुनिसुव्रत स्वामी एक बार 'सावत्थी' नगरी में पधारे । राजकुमार खंधक ने भगवान का उपदेश सुना। विरक्त होकर पाँच सौ राजपुत्रों के साथ दीक्षित हो गया। 'खंधक' ज्ञान-चरित्र की साधना में निष्णात हुआ। एकदा 'खंधक' के मन में आया 'कुंभकटकपुर' नगर जाकर अपनी सहोदरी 'पुरन्दरयशा' को अवश्य प्रतिबोध दूँ। वहाँ जाने के लिए जब प्रभु से आज्ञा चाही, तब प्रभु ने फरमाया-'वहाँ जाने में तुम्हें मरणान्तक कष्ट उपस्थित होगा।' खंधक ने फिर पूछा—'माना कि मरणान्तक कष्ट होगा, पर सारे आराधक होंगे या विराधक?' प्रभु ने फरमाया—'तुम्हारे सिवाय सभी आराधक होंगे। केवल एक तू ही विराधक होगा।' ____ खंधक मुनि फिर भी नहीं रुके। उन्होंने सोचा—मेरा एक अहित होकर भी यदि सबका हित सधता हो तो लाभ का ही सौदा है। ऐसा विचार करके वे अपने पाँच सौ शिष्यों सहित कुंभकटकपुर चले आये और नगर के बाहर उपवन में ठहर गये। ___ 'पालक' को जब पता लगा कि पाँच सौ शिष्यों के साथ खंधक यहाँ आये हैं, तब उसने अपनी पराजय का बदला लेना चाहा। राजा को बरगलाने के लिए एक षड्यन्त्र रचा। उपवन में गुप्त रूप से शस्त्र गड़वाकर राजा से उसने कहा—'खंधक आपका राज्य छीनने आये हैं, मौके की ताक में हैं। अपने आवास-स्थान के आसपास गुप्त रूप से शस्त्र गाड़ रखे हैं। इसके साथ
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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