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जैन कथा कोष ११५
भेद पाकर 'कंस' ने मथुरा का राज्य जरासन्ध से कर- मोचन में माँग लिया । राज्य प्राप्त करके उग्रसेन को पिंजरे में डालकर नगर के दरवाजे पर लटका दिया ।
'कंस' ने अपनी चचेरी बहन 'देवकी' का विवाह 'वसुदेव' के साथ करा दिया। जीवयशा ने अपने देवर मुनि उग्र तपस्वी अतिमुक्तक से उपहास किया । उस उपहास से खिन्न होकर मुनि ने कहा- ' जिसके विवाह में उन्मुक्त होकर मेरे साथ गीत गाने को ललचा रही है, पर ध्यान रखना, इसी देवकी का सातवाँ पुत्र तेरे कुल का नाश करने वाला होगा ।'
कंस भी मुनि के कथन को सुनकर भौंचक्का - सा रह गया। मुनि की वाणी को असत्य सिद्ध करने के लिए 'देवकी' को वहीं रखा। देवकी के छः बालक पैदा हुए, उन्हें देवता 'सुलसा' के यहाँ रखता गया । 'सुलसा' के मरे हुए पुत्रों को कंस पटक-पटककर दूर फेंकता रहा। सातवीं बार श्रीकृष्ण का जन्म हुआ । उसे वसुदेव गोकुल में नंद-यशोदा के यहाँ दे आये । नन्द की तत्काल पैदा हुई पुत्री लाकर कंस के सामने रख दी। कंस ने उसकी नासिका छिन्न करके छोड़ दिया । 'कंस' ने एक बार एक नैमित्तिक से अपनी मृत्यु के संबंध में पूछा तब नैमित्तिक ने कहा—' जो तुम्हारे बैल, गर्दभ, हाथी, अश्व, चाणूर - मल्ल आदि को मारेगा तथा सत्यभामा के स्वयंवर - मण्डप में धनुष को तोड़ेगा, वही तुम्हें मारेगा।'
एक-एक करके सब सामने आते गये और श्रीकृष्ण सबको मारते गये । अन्त में कंस को भी श्रीकृष्ण ने समाप्त कर दिया । कंस को मारकर मथुरा का राज्य, पिंजरे के बंधन से मुक्त करके, उग्रसेन को दिया । उग्रसेन ने अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया । कंस मरकर नरक में गया ।
- आवश्यक चूर्णि
— त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र,
पर्व ζ — वसुदेव हिंड़ी
६५. खंधक कुमार (स्कंदक)
सावत्थी (श्रावस्ती) नगरी के महाराज 'जितशत्रु' की पटरानी का नाम ' धारिणी' था । उसके एक पुत्र और पुत्री थी । पुत्र का नाम था 'खंधक कुमार'