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________________ ११४ जैन कथा कोष 'कौशल्या' आदि माताओं का आशीर्वाद लेकर राम वन गए । 'रावण' के द्वारा 'सीता' का हरण भी हुआ। 'रावण' का नाश करने के बाद सीता को लेकर राघव पुनः लौट आये । 'भरत' के आग्रह से भी 'राम' ने राज्य स्वीकार नहीं किया। अपने अनुज लक्ष्मण को ही अयोध्या के सिंहासन पर बैठाया। रानी कौशल्या को विरक्ति आ गई, क्योंकि उसने राम को वनवासी वेश में देखा तो अयोध्या में राजसिंहासन का त्यागी रूप भी देख लिया। पति का सुख देखा तो ति-वियोग का दुःख भी देखा। राजरानी बनी तो राजमाता से बढ़कर गौरव भी प्राप्त किया। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि कौशल्या ने संसार की रंगशाला के कई रंग देख लिये। साध्वी बनकर सकल कर्मों को तोड़कर उसने निर्वाण प्राप्त किया। कौशल्या की गिनती सोलह सतियों में होती है। —त्रिषष्टि शलाकापुरुष, पर्व ७ ६४. कंस 'कंस' 'मथुरा' नगरी के महाराज 'उग्रसेन' का पुत्र था। जब यह उग्रसेन की महारानी 'धारिणी' के गर्भ में आया तब रानी धारिणी को अपने पति राजा उग्रसेन के कलेजे का माँस खाने का दोहद उत्पन्न हुआ। यह गर्भस्थ शिशु का ही प्रभाव था। इस दुर्भावना के कारण शिशु को जन्म के बाद रानी ने यह सोचकर काँसी की पेटी में डालकर नदी में बहा दिया कि ऐसे पेट के कीड़े से क्या हित होना है। _ 'शौरीपुर' में सेठ 'सुभद्र' ने उस तैरती हुई पेटी को निकाला। पुत्र को पाकर फूला न समाया। काँसी की पेटी में निकला था इसलिए इसका नाम 'कंस' रखा गया। ___ 'कंस' बड़ा हुआ। इसकी नटखटता, उच्छृखलता से परेशान होकर 'सुभद्र' ने महाराज 'वसुदेव' के यहाँ इसे नौकर रख दिया। वसुदेव ने इसे शस्त्र-कला म निष्णात बना दिया। अपने कर्तव्य के बल पर 'वसुदेव' के यहाँ इसने अपना अच्छा स्थान बना लिया। महाराज 'जरासन्ध' के आदेश से 'वसुदेव' 'कंस' को साथ लेकर 'सिंहरथ' राजा से युद्ध करने गये। वहाँ कंस' ने 'सिंहरथ' को पकड़ लिया। 'जरासन्ध' ने अपनी शर्त के अनुसार अपनी पुत्री 'जीवयशा' का पाणिग्रहण 'कंस' के साथ कर दिया। अपने जन्म का
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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